बीमा एवं बैंक के प्रकार / BIMA AVM BANK KE PEAKAR NOTES IN HINDI PDF
बीमा AVM बैंक KE प्रकार NOTES
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तो दोस्तों हम आशा करते हैं की यह नोट्स आपके लिए उपयोगी साबित होंगे
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बीमा
बीमा का अर्थ :-
● मनुष्य का जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है। जीवन में अनेक ऐसी घटनाएं घटित होती रहती है जिससे हानि हो ।
● इन अनिश्चितताओं या खतरों को न्यूनतम करने के लिए बीमा की आवश्यकता होती है।
● अतः बीमा एक ऐसी व्यवस्था है जिसके
द्वारा किसी अनिश्चित घटना के घटनें से होने
वाली संभावित हानि को कम किया जा सकता है।
● बीमा में अभिप्राय दो पक्षों के बीच अनुबंध से है जिनमें से एक को बीमित/ बीमाकृत और दूसरे को बीमाकार कहते हैं।
बीमा के प्रकार :-
● बीमा कंपनियाँ किस प्रकार की बीमा करती हैं तथा बीमा व्यवसाय के नियंत्राण के लिए विभिन्न अधिनियमों में क्या व्यवस्थाएँ हैं, ये घटक बीमा के विभिन्न प्रकारों को निश्चित करते हैं।
● बीमा की विषयवस्तु अथवा बीमित जोखिम की प्रकृति के आधार पर मोटे तौर पर बीमा को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है।
(1) जीवन बीमा (2) अग्नि बीमा
(3) सामुद्रिक बीमा (4) अन्य प्रकार के बीमे
(1) जीवन बीमा :-
● मानव होने के नाते हमारा सामना अनेकों- अनेक जोखिमों से होता है।
● जीवन अनिश्चित है इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति
भविष्य में एक निश्चित राशि की प्राप्ति को सुनिश्चित करना चाहता है ताकि जिन घटनाओं के संबंध में पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता, उनसे बचाव किया जा सके।
● जीवन में व्यक्ति को कोई न कोई जोखिम उठाना पड़ ही जाता है।
● ऐसी परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति इन जोखिमों से अपनी सुरक्षा चाहेगा और बीमा
कंपनी यह सुरक्षा प्रदान करती है।
● जीवन बीमा, जीवन की अनिश्चितता से
सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रारंभ किया गया था।
● लेकिन धीरे-धीरे इसका क्षेत्र बढ़ता गया और अब व्यक्तियों की आवश्यकतानुकूल कई प्रकार की जीवन बीमा पॅालिसियाँ हैं। उदाहरण के लिए :-
जीवन बीमा पाॅलिसियों के प्रकार :-
● एक प्रलेख जो बीमाकार एवं बीमाकृत के बीच लिखित समझौता है तथा जिसमें बीमे की शर्तें भी होती है, उसे पाॅलिसी कहते हैं।
● हर व्यक्ति की अलग-अलग आवश्यकताएँ होती हैं और उन्हीं के अनुसार उन्हें पाॅलिसियों की आवश्यकता होती है ये आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं :-
● बीमाकारों ने बीमीत की ऐसी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न पाॅलिसी निकाली हैं जैसे :-
आजीवन बीमा पाॅलिसी : -
● इस प्रकार की बीमा पाॅलिसी में बीमा राशि बीमित को बीमा किए गए व्यक्ति की मृत्यु से
पहले नहीं मिलती है ।
● यह पाॅलिसी ऐसे व्यक्ति द्वारा ली जाती है जो अपनी मृत्यु के पश्चात अपने पर आश्रित व्यक्तियों को वित्तीय सहायता पहुँचाना चाहता है।
● यह राशि केवल लाभार्थी अथवा मृतक के उत्तराधिकारियों को ही मिल सकेगी ।
● प्रीमियम का भुगतान निश्चित अवधि (20 अथवा 30 वर्ष ) अथवा बीमाकृत के पूरे जीवन के लिए किया जाएगा।
● यदि प्रीमियम का भुगतान निर्धारित अवधि के लिए किया जाना है तो पाॅलिसी बीमाकृत
व्यक्ति की मृत्यु तक चलती रहेगी।
बंदोबस्ती जीवन बीमा पाॅलिसी :-
● इस प्रकार की पाॅलिसी में बीमाकार, बीमित को एक निश्चित राशि एक निश्चित उम्र पाने अथवा उसकी मृत्यु पर, जो भी पहले हो, देने का वचन देता है।
● बीमाकृत की मृत्यु पर बीमा राशि उसके विधिसम्मत उत्तराधिकारी अथवा मनोनीत व्यक्ति को दे दी जाएगी अन्यथा यह राशि बीमाकृत को एक निश्चित अवधि की समाप्ति पर या फिर एक निश्चित आयु प्राप्त कर लेने पर दी जाएगी।
● अतः बंदोबस्ती बीमा पाॅलिसी सीमित वर्षों में परिपक्व हो जाती है।
संयुक्त बीमा पाॅलिसी :-
● यह पाॅलिसी दो या दो से अधिक व्यक्तियों के द्वारा ली जाती है।
● प्रीमियम का भुगतान वे मिलकर करते है या फिर उनमें से कोई एक करता है, जो किश्तों में अथवा एकमुश्त की जा सकती है।
● बीमित राशि अथवा पाॅलिसी में लिखित राशि का भुगतान, उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाने पर अन्य बचे व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को कर दिया जाता है।
● साधारणतया यह पाॅलिसी पति-पत्नी मिलकर अथवा फर्म के दो साझेदारों द्वारा ली जाती है जिसकी राशि का भुगतान किसी एक की मृत्यु पर दूसरे जीवित व्यक्ति को कर दिया जाता है।
वार्षिक वृत्ति पाॅलिसी :-
● इस पाॅलिसी में बीमित राशि अथवा पाॅलिसी की राशि एक आयु की प्राप्ति पर मासिक, त्रैमासिक,अर्ध वार्षिक अथवा वार्षिक किश्तों में भुगतान की जाती है
● प्रीमियम की राशि किस्तों में अथवा एकमुश्त दी जा सकती है
● यह उन लोगों के लिए अधिक उपयोगी है जो एक निश्चित आयु के बाद नियमित आय चाहतें हैं।
बच्चों की बंदोबस्ती बीमा पाॅलिसी :-
● इस पाॅलिसी को लोग अपने बच्चों की पढ़ाई अथवा शादी के खर्चाें के लिए लेते हैं।
● अनुबंध के अनुसार बीमाकार बच्चे की एक निर्धारित आयु पर एक निश्चित राशि का भुगतान करता है।
● प्रीमियम की राशि अनुबंध करने वाले व्यक्ति द्वारा दी जाती है।
● यदि उस व्यक्ति की पाॅलिसी के परिपक्व हो जाने से पहले ही मृत्यु हो जाती है, तो आगे कोई प्रीमियम नहीं देना होता।
धनवापसी पालिसी :-
● इस योजना में पालिसी धारक को कुछ समय के अन्तराल पर भुगतान किया जाता है।
● यह सामान्य स्थायी निधि बीमा पाॅलिसी से हटकर है जिसमें जीवित रहने पर कुल भुगतान का लाभ केवल एक निश्चित आयु की प्राप्ति के बाद ही मिलता है।
● उदाहरण के लिए, यदि धनवापसी पाॅलिसी 20 वर्ष के लिए ली गई है तो बीमित राशि का 20 प्रतिशत प्रति पाँच वर्ष, 10 वर्ष, 15 वर्ष एवं शेष 40 प्रतिशत बोनस सहित 20वें वर्ष के पश्चात देय हो जाता है।
यूनिट योजनाएं :-
● यह योजनाएं दोहरे लाभ अर्थात निवेश एवं बीमा दोनों का लाभ प्रदान करती हैं।
● पाॅलिसी धारक द्वारा जिस प्रीमियम की राशि का भुगतान किया जाता है उसे विभिन्न कंम्पनियों के अंशों एवं ऋण पत्रों के क्रय पर खर्च किया जाता है।
● परिपक्वता राशि मुख्य रूप से निवेश के बाजार मूल्य पर निर्भर करती है।
सामूहिक बीमा :-
● सामूहिक बीमा योजनाएं कुछ व्यक्तियों के समूह को कम लागत पर जीवन बीमा सुरक्षा प्रदान करने के लिए होती हैं।
● यह योजना किसी भी व्यावसायिक इकाई अथवा कार्यालय के कर्मचारियों के समूह के लिए उपयोगी है।
2. अग्नि बीमा :-
● अग्नि बीमा एक ऐसा समझौता है , जिसमें बीमाकार प्रीमियम के प्रतिफल के बदले पाॅलिसी में वर्णित राशि तक एक निर्धारित अवधि के दौरान आग से होने वाली क्षति की पूर्ति का दायित्व लेता है।
● सामान्यतः अग्नि बीमा एक वर्ष के लिए होता है, जिसका प्रतिवर्ष नवीनीकरण कराना होता है।
● प्रीमियम एकमुश्त भी दिया जा सकता है और किश्तों में भी।
● अग्नि से होने वाली क्षति के दावे के लिए नीचे दी गई दो शर्ताें को पूरा करना आवश्यक है :-
(1) हानि वास्तव में हुई हो
(2) अग्नि दुर्घटनावश लगी हो एवं जान-बूझकर न लगाई गई हो।
(3) यदि बिना आग की लपटों के मात्र अत्याधिक गर्म हो जाने से क्षति हुई है तो यह अग्नि से हुई हानि नहीं मानी जाएगी तथा इसकी पूर्ति बीमाकार नहीं करेगा।
● अग्नि बीमा अनुबंध क्षतिपूर्ति का अनुबंध है अर्थात बीमित सम्पति की कीमत, अग्नि से क्षति अथवा पाॅलिसी की राशि तीनों में से जो भी कम हो, से अधिक राशि का दावा नहीं कर सकता।
● अग्नि से हानि अथवा क्षति में हानि को कम करने के लिए की गई कोशिशों से होने वाली हानि अथवा क्षति भी सम्मिलित होती है।
अग्नि बीमा प्रसंविदा/समझौते के प्रमुख तत्व :-
● अग्नि बीमा में बीमाकृत का बीमे की विषय-वस्तु में बीमा योग्य हित होना
चाहिए।
● बिना बीमोचित स्वार्थ के बीमा प्रसंविदा निरस्त हो जाएगा।
● अग्नि बीमा में जीवन बीमा से भिन्न बीमा योग्य हित बीमा कराते समय एवं हानि के समय अर्थात् दोनों समय होना आवश्यक है।
● उदाहरण के लिए, किसी भी व्यक्ति का
उसकी संपत्ति जिसका वह स्वामी है, में बीमा योग्य हित होता है।
● इसी प्रकार से एक व्यापारी का स्टॅाक, संयंत्रा एवं मशीनरी तथा भवन में, एक साझी का
फर्म की संपत्ति में, रहनदार का बंधक
रखी गई संपत्ति में बीमा योग्य हित होता है।
● जीवन बीमा के समान अग्नि बीमा प्रसंविदा भी पूर्ण सद्भाव की प्रसंविदा है।
● बीमाकृत को ईमानदारी से बीमा कंपनी को बीमा की विषय-वस्तु के संबंध में सत्य जानकारी देनी चाहिए।
● यह उसका दायित्व है कि वह संपत्ति के संबंध में एवं उससे जुड़े जोखिमों के संबंध में सभी तथ्यों को उजागर करे।
● बीमा कंपनी को भी प्रस्तावक को पाॅलिसी के संबंध में सभी तथ्यों को बता देना चाहिए।
● अग्नि बीमा अनुबंध पूर्णतः क्षतिपूर्ति का अनुबंध है। क्षति होने की स्थिति में वह
वास्तविक हानि को बीमाकार से वसूल
सकता है।
● यह राशि भी बीमा की राशि से अधिक नहीं होनी चाहिए। उदाहरण के लिए माना एक व्यक्ति ने अपने घर का बीमा 4,00,000 रु. में कराया है। यह आवश्यक नहीं है कि बीमाकार इस पूरी राशि का भुगतान करे भले ही पूरा
मकान आग से जलकर नष्ट क्यों न हो
गया हो। वह 4,00,000 रु की अधिकतम
सीमा तक ह्रास लगाकर वास्तविक हानि
का ही भुगतान करेगा।
● इसका उद्देश्य यही है कि कोई व्यक्ति बीमा से लाभ न कमा सके।
● बीमाकार क्षति की पूर्ति केवल उस स्थिति
में ही करेगा, जब क्षति हानि के निकटतम
कारण से हुई हो।
3. सामुद्रिक बीमा :-
● सामुद्रिक बीमा प्रसंविदा एक ऐसा अनुबंध है
जिसके तहत बीमाकार समुद्री जोखिमों के विरुद्ध तय रीति से एवं तय राशि तक बीमाकृत की क्षतिपूर्ति का वादा करता है ।
● सामुद्रिक बीमा समुद्र मार्ग से यात्रा एवं समुद्री जोखिमों से सुरक्षा प्रदान करता है
समुद्री यात्रा के जोखिम निम्न प्रकार से हैं :-
● इन समुद्री जोखिमों के कारण जहाज़ अथवा उसमें लदा माल नष्ट हो सकता है, क्षति हो सकती है अथवा अलोप हो सकता है या भाड़े का भुगतान न किया जाए।
● इसीलिए समुद्री बीमे में जहाज़ ,उसमें लदा सामान एवं भाड़े का बीमा किया जाता है।
● यह एक ऐसी पद्धति है जिसके अनुसार बीमाकार जहाज़ के स्वामी अथवा माल
के स्वामी को संपूर्ण अथवा आंशिक सामुद्रिक
हानि की पूर्ति का वचन देता है।
● बीमाकार समुद्री यात्रा से संबंधित जोखिमों से जहाश एवं माल को हुई हानि की पूर्ति करने की गारन्टी देता है।
● यहाँ बीमाकार एक अभिगोपनकर्ता है तथा गारन्टी एवं सुरक्षा के बदले बीमित प्रीमियम का भुगतान करता है।
● समुद्री बीमा अन्य बीमों से थोड़ा भिन्न है। इसमें तीन चीजें सम्मिलित हैं- जहाज़, माल एवं भाड़ा।
जहाज बीमा :-
● जहाज़ के लिए समुद्र में अनेकों जोखिम मौजूद हैं। बीमा पाॅलिसी जहाज़ को पहुँची क्षति से होने वाली हानि की पूर्ति के लिए होती है।
माल का बीमा :-
● जहाज़ से जब माल भेजा जाता है तो इसे भी अनेकों जोखिम होते हैं। ये खतरे बंदरगाह पर चोरी, माल के गुम हो जाने या फिर मार्ग में हानि के रूप में हो सकते हैं।
● अतः बीमा पाॅलिसी माल को इन जोखिमों के विरुद्ध जारी की जाती है।
भाड़ा बीमा :-
● मार्ग में क्षति अथवा नष्ट हो जाने से माल यदि गन्तव्य स्थान तक न पहुँचे तो जहाज़ी कंपनी को भाड़ा नहीं मिलेगा।
● भाड़ा बीमा जहाज़ी कंपनी अर्थात् बीमाकृत को भाड़े की हानि को पूरा करने के लिए होता है।
समुद्री बीमा प्रसंविदा के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं :-
● जीवन बीमा से अलग समुद्री बीमा प्रसंविदा क्षतिपूर्ति की प्रसंविदा होती हैं ।
● हानि होने पर बीमाकृत बीमाकार से वास्तविक हानि की राशि को प्राप्त
कर सकता है।
● किसी भी परिस्थिति में बीमाकृत को समुद्री बीमे से लाभ कमाने की छूट नहीं दी जा सकती। माल की पाॅलिसी वास्तविक क्षति की पूर्ति नहीं करती। यह वाणिज्यिक क्षतिपूर्ति करती है। बीमाकार, बीमाकृत को तय रीति एवं
राशि तक की क्षति की पूर्ति का वचन
देता है।
● हर पाॅलिसी में बीमा राशि वर्तमान बाज़ार मूल्य के बराबर होती है, उससे अधिक नहीं।
● जीवन बीमा व अग्नि बीमा के समान समुद्री बीमा प्रसंविदा पूर्ण सद्विश्वास की
प्रसंविदा होती है।
● बीमाकार एवं बीमाकृत दोनों को ही उन सभी तथ्यों को उजागर कर देना चाहिए जिसका उनको ज्ञान है एवं जो भी बीमा प्रसंविदा को प्रभावित कर सकते हैं।
● यह बीमाकृत का कर्तव्य है कि वह सभी तथ्यों को पूरी ईमानदारी से प्रकट करे जिनमें माल की प्रकृति एवं माल को जिन जोखिमों से क्षति हो सकती है, सम्मिलित हैं।
● बीमायोग्य हित का हानि के समय होना
अनिवार्य है, भले ही पाॅलिसी लेने के समय वह न हो।
सामुद्रिक बीमा अन्य शब्दों में :-
● सामुद्रिक बीमा एक ऐसा अनुबंध है जिसमें बीमा कम्पनी जहाज अथवा जहाजी माल को समुद्र की यात्रा के दौरान होने वाले जोखिम से क्षति की पूर्ति का आश्वासन देती है।
● समुद्री यात्रा के मध्य जहाज को विभिन्न प्रकार का जोखिम होता है, जैसे किसी अन्य जहाज से टकरा जाना, समुद्री चट्टानों से टकरा जाना, तूफान, आदि।
● इन सभी परिस्थितियों में होने वाली हानियों को तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है - (1) जहाज को हानि (2) जहाजी माल की हानि एवं (3) मालभाडे़की हानि।
● माल की हानि के विरूद्ध सामुद्रिक बीमा को माल (कार्गों) बीमा कहते हैं।
● जहाज के स्वामी ने जब समुद्री जोखिमों से होने वाली हानि का बीमा कराया होता है तो उसे जहाजी बीमा अथवा हल बीमा कहते हैं।
● सामान्यतः माल का स्वामी भाड़े का भुगतान माल के गन्तव्य बन्दरगाह पर पहुँचने पर करता है। इसलिए जहाजी कंपनी भाड़े की हानि के विरूद्ध भी बीमा करा सकती है। इसे भाड़ा बीमा कहते हैं।
अन्य प्रकार के बीमे :-
● जीवन बीमा, अग्नि बीमा एवं सामुद्रिक बीमा के अतिरिक्त साधारण बीमा कम्पनियां विभिन्न
पालिसियों के माध्यम से अन्य कई जोखिमों का बीमा करती हैं।
● इनमें से कुछ जोखिम तथा विभिन्न पालिसियां नीचे दी गई हैं।
मोटर वाहन बीमा :-
● मोटर वाहन बीमा सामान्य बीमा वर्ग में आता है।
● यात्री कार, वैन, मोटर साइकिल, स्कूटर आदि का बीमा दुर्घटना से वाहन को होने वाली क्षति, चोरी से होने वाली हानि, तथा दुर्घटना के कारण तीसरे पक्ष को चोट पहुँचने अथवा मृत्यु हो जाने से उत्पन्न देनदारी के विरूद्ध बीमा है।
● वास्तव में वाहन का तीसरे पक्ष के संबंध में बीमा अनिवार्य है।
● इस प्रकार का बीमा बहुत लोकप्रिय हो रहा है तथा दिन-प्रतिदिन इसका महत्व बढ़ता जा रहा है।
● मोटर बीमा में मोटर के स्वामी अथवा ड्राइवर की गलती से यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है अथवा उसे क्षति पहुँचती है, तो उस दशा में व्यक्ति के क्षतिपूर्ति के दायित्व को बीमा कंपनी अपने ऊपर ले लेती है।
● अधिक व्यवसाय के कारण इस प्रकार के
बीमा में प्रीमियम की राशि मानकीकृत होती है।
स्वास्थ्य बीमा :-
● यह पालिसी धारक को बीमारी अथवा चोट लगने आदि से होने वाले इलाज पर व्यय से सुरक्षा प्रदान करती है।
● स्वास्थ्य बीमा चिकित्सा संबंधी व्ययों में वृद्धि से सुरक्षा प्रदान करता है। स्वास्थ्य बीमा,
बीमाकार एवं व्यक्ति अथवा समूह के बीच एक प्रसंविदा है जिसमें बीमाकार निर्धारित मूल्य (प्रीमियम) के बदले निश्चित स्वास्थ्य बीमा करने का समझौता करता है।
● प्रीमियम की राशि का एकमुश्त अथवा किश्तों में भुगतान किया जाता है। जो बीमा पालिसी पर निर्भर करता है।
● स्वास्थ्य बीमा में सामान्यतः बीमारी अथवा
क्षति/चोट पर व्ययों का या तो सीधा भुगतान होता है या फिर व्यय के पश्चात् उनको चुकता किया जाता है।
स्वास्थ्य बीमा की लागत एवं उसके द्वारा प्रदत्त विभिन्न प्रकार की सुरक्षा, बीमाकार एवं पाॅलिसी पर निर्भर करती है।
● भारत में वर्तमान में स्वास्थ्य बीमा मूल रूप से मेडीक्लेम पाॅलिसी के रूप में प्रचलित है जिसे
व्यक्ति अथवा समूह, संगठन अथवा कंपनी को दिया जाता है
● आजकल यह सर्वाधिक लोकप्रिय बीमा है।
फसल का बीमा :-
● यह सूखा अथवा बाढ़ के कारण फसल को होने वाली हानि से किसानों को संरक्षण प्रदान करता है।
● फसल का बीमा वह प्रसंविदा है जिसके द्वारा सूखा पड़ने अथवा बाढ़ के कारण फसल के नष्ट हो जाने की दशा में किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
● इस प्रकार का बीमा चावल, गेहूँ, मक्का, तिलहन एवं दाल आदि के उत्पादन से संबंधित सभी प्रकार की हानि अथवा क्षति की जोखिमों विरुद्ध होता है।
● हमारे देश में अभी तक सभी फ़सलों की सभी प्रकार की हानियों अथवा क्षति के विरुद्ध बीमे का प्रारंभ नहीं हुआ है।
रोकड़ का बीमा :-
● यह बैंक एवं अन्य व्यावसायिक संस्थानों को नकदी एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय रास्ते में चोरी या किसी अन्य कारण से होने वाली हानि के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है।
पशुओं का बीमा :-
● यह गायें, भैंसे, बैल आदि के दुर्घटनावश, बीमारी आदि से मृत्यु के कारण होने वाली हानि के जोखिम का बीमा है।
● पशु बीमा प्रसंविदा एक वह प्रसंविदा है जिसमें बीमाकृत को बैल, भैंस, गाय एवं
बछड़ें जैसे पशुओं के मरने पर एक निश्चित राशि प्रदान करना सुनिश्चित किया जाता है।
● इस प्रसंविदा के अनुसार यह राशि पशुओं की दुर्घटना, बीमारी, प्रसव अथवा गर्भधारण के कारण मृत्यु होने पर दी जाती है।
● बीमाकार सामान्यतः हानि होने पर आधिक्य का भुगतान करने का दायित्व लेता है।
राजेश्वरी महिला कल्याण बीमा योजना :-
● यह योजना बीमित महिला की मृत्यु अथवा उसके विकलांग हो जाने पर परिवार के सदस्यों को राहत पहुँचाती है।
● यह पाॅलिसी बीमाकृत स्त्री के परिवार के सदस्यों को किसी भी दुर्घटना के कारण उसकी मृत्यु अथवा विकलांग होने पर एवं केवल स्त्रियों से जुड़ी समस्याओं के कारण उसकी मृत्यु अथवा विकलांगता की स्थिति में, सहायता प्रदान करने के लिए दी जाती है।
अमत्र्य शिक्षा योजना बीमा पालिसी :-
● यह आश्रित बच्चों की शिक्षा के लिए ली जाने वाली पालिसी है।
● यदि बीमित व्यक्ति को कोई शारीरिक चोट पहुँचती है जिसके कारण उसकी मृत्यु हो जाती है अथवा वह स्थाई रूप से विकलांग हो जाता है तो बीमा कम्पनी बीमित अविभावकों को आश्रित बच्चों की पढ़ाई का खर्च वहन करेगी।
● सामान्य बीमा कंपनी द्वारा जारी यह पाॅलिसी आश्रित बच्चों की शिक्षा को सुरक्षा प्रदान करती है।
● बीमाकृत अभिभावक वैधनिक अभिभावक को दुर्घटना से, बाह्य झगड़े एवं अन्य दृष्टव्य कारण से यदि कोई शारिरिक क्षति पहुँचती है एवं यदि इस चोट से 12 माह के भीतर उसकी मृत्य हो जाती है अथवा स्थायी रूप से उसे विकलांग बना देती है, तो बीमाकार , बीमाकृत विद्यार्थी की इस दुर्घटना के होने की तिथि से लेकर पाॅलिसी की अवधी की समाप्ति अथवा पाॅलिसी में निश्चित अवधी के पूरा होने तक, जो भी पहले हो, पाॅलिसी में वर्णित खर्चाें को पूरा करेगा। यह राशि बीमा राशि से अधिक नहीं होगी।
चोरी से क्षति का बीमा :-
● इस प्रकार के बीमे में बीमा कंम्पनी बीमित को चोरी से हाने वाली हानि की क्षतिपूर्ति का वचन देती है।
● चोरी या डकैती से हानि का अर्थ है चल-संपत्ति की लूटपाट, चोरी आदि से हानि।
● चोरी के विरुद्ध बीमा, संपत्ति का बीमा के अंतर्गत आता है।
● चोरी के विरुद्ध पाॅलिसी चोरी, ठगी, सेंध्मारी, ताला तोड़ना तथा अन्य इसी प्रकार के कार्यों से घरेलू सामान अथवा संपत्ति की हानि अथवा पहुँचने वाली क्षति एवं व्यक्तिगत हानि के लिए दी जाती है।
● इसमें वास्तविक हानि की पूर्ति की जाती है।
विशेष :-
विश्वसनीयता का बीमा :-
● कर्मचारियों के द्वारा रोकड़ (नकदी) का घोटाला या फिर वस्तुओं के दुरूपयोग से हानि के जोखिम से संरक्षण के लिए व्यवसायी उन कर्मचारियों की, जो रोकड़ को संभालते हैं या फिर स्टोर के प्रभारी हैं, बेइमानी अथवा धोखे से होने वाली हानि के जोखिम के विरूद्ध बीमा कराता है। इसे विश्वसनीयता का बीमा कहते हैं।
खेल का बीमा :-
● यह पाॅलिसी शौकिया खिलाड़ियों के खेल का सामान, व्यक्तिगत हानि, वैधानिक दायित्व एवं स्वयं की दुर्घटना जैसे जोखिमों के विरुद्ध एक व्यापक बीमा होता है। यदि चाहे तो इसमें खिलाड़ी द्वारा नामित उसके साथ रह रहे परिवार के सदस्य को सम्मिलित किया जा सकता है।
● इस प्रकार का बीमा व्यावसायिक खिलाड़ियों के लिए नहीं होता।
● यह बीमा निम्न में से एक या अधिक खेलों का हो सकता है :-
बैंक / बैंकिग :-
● भारत में एक बैंकिग कंपनी वह है, जो बैंकिग का व्यापार करती है। यह ॠण देती है तथा जनता से ऐसी जमा स्वीकार करती है जिन्हें माँगने पर अथवा अन्य किसी समय पर भुगतान करना होता है तथा जिन्हें ग्राहक चेक, ड्राफ्रट, आर्डर या अन्य किसी माध्यम से निकाल सकते हैं।
● बैंक जमा के रूप में धन स्वीकार करते हैं जिसे माँगने पर लौटाना ही होता है तथा ॠण देकर लाभ कमाते हैं।
● बैंक लोगों की बचत को जमा करते हैं तथा व्यवसाय को उसके पूँजीगत एवं आयगत व्ययों के लिए धन उपलब्ध कराते हैं।
● यह वित्तीय विलेखों में लेन-देन करते हैं तथा एक निर्धरित मूल्य पर वित्तीय सेवाओं जैसे- ब्याज, बट्टा, कमीशन आदि से भी संबंध् रखते हैं।
बैंकों के प्रकार :-
● बैंकिंग के केंद्र बिन्दु कई हैं, बैंकिंग सेवा की आवश्यकताएँ भी विभिन्न प्रकार की हैं एवं पद्धतियाँ भी अलग-अलग हैं।
● इसलिए इन जटिलताओं का सामना करने के लिए हमें अलग-अलग प्रकार के बैंकों की आवश्यकता होती है।
बैंकों को निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है :-
1. वाणिज्यिक बैंक :-
● वाणिज्यिक बैंक वे संस्थान हैं जो मुद्रा में व्यापार करते हैं। ये ‘भारतीय बैंक नियमन अधिनियम-1949’ द्वारा शासित होते हैं। इस अधिनियम के अनुसार बैंकिग का अर्थ, ॠण देना अथवा विनियोग के लिए जनता से जमा स्वीकार करना है।
● वाणिज्यिक बैंक या व्यावसायिक बैंक या व्यापारिक बैंक वह संस्था होती है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से लोगों की जमाओं को स्वीकार करते है तथा लोगों को जब ऋण की आवश्यकता होती है तो उन्हें उधार भी देते हैं।
● आजकल वाणिज्यिक बैंकों ने व्यापार एवं औद्योगिक इकाईयों को भी मध्यम अवधि एवं दीर्घ अवधि ऋण देने प्रारम्भ कर दिये हैं।
वाणिज्यिक बैंक प्रकार :-
● वाणिज्यिक बैंकों के भी विभिन्न प्रकार है जैसे :-
(1) निजी क्षेत्र के बैंक :-
● निजी क्षेत्र के बैंकों का स्वामित्व, प्रबंधन एवं नियंत्राण निजी प्रवर्तकों के हाथों में होता है तथा ये बाजार की शक्तियों के अनुसार काम करने को स्वतंत्र होते हैं।
● निजी क्षेत्र वाणिज्यिक बैंकों में बैंकों के अधिकांश अंश पूँजी निजी हाथों में होती है।
● यह बैंक सार्वजनिक कम्पनी के रूप में पंजीकृत होते हैं।
(2) सार्वजनिक क्षेत्रा के बैंक :-
● सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक वे होते हैं जिनमें सरकार का एक बड़ा हिस्सा होता है तथा सामान्यतः सामाजिक उद्देश्यों पर जोर दिया जाता है । लाभ कमाना इनका उद्देश्य नहीं होता।
● सार्वजनिक क्षेत्र के वाणिज्यिक बैंकों में अधिकांश भागीदारी भारत सरकार व भारतीय रिजर्व बैंक की होती है।
(3) विदेशी बैंक :-
● ऐसे बैंक जिनकी स्थापना व समामेलन विदेशों में हुआ है लेकिन इनकी शाखाएं हमारे देश में कार्यरत हैं।
● इस वर्ग के बैंक हैं :-
2. सहकारी बैंक :-
● सहकारी बैंक ‘राज्य सहकारी समितियाँ अधिनियम’ के प्रावधानों से शासित होते हैं तथा ये अपने सदस्यों को सस्ती दर पर ॠण उपलब्ध कराते हैं।
● ये भारत में ग्रामीण ॠण अर्थात् कृषि वित्तीयन का प्रमुख स्रोत हैं।
● जब एक सहकारी समिति बैंकिंग व्यवसाय करती है तो इसे सहकारी बैंक कहते हैं।
● सहकारी बैंक समान्यतः उद्देश्यपूर्ण ऋण देते हैं।
● ब्याज सामान्यतः कम दर से लिया जाता है।
● इन बैंकों का नियन्त्राण एवं इनका निरीक्षण भी भारतीय रिजर्व बैंक करता है।
● हमारे देश में तीन प्रकार के सहकारी बैंक कार्य कर रहे हैं।
3. विशिष्ट बैंक / विशेष उद्देश्य बैंक :-
● कुछ ऐसे बैंक हैं जो किसी विशेष गतिविधि अथवा क्षेत्रा विशेष में कार्य करते हैं। इसलिए इन्हें विशेष उद्देश्यय बैंक कहते हैं।
● भारतीय आयात-निर्यात बैंक, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक आदि इस वर्ग के बैंकों के उदाहरण हैं।
● विशिष्ट बैंक विदेशी बैंक, औद्यौगिक बैंक, विकास बैंक, आयात-निर्यात बैंक होते हैं, जो इन विशिष्ट क्रियाओं की विशेष जरूरतों को पूरा करते हैं।
● ये बैंक औद्योगिक इकाइयों, दिशा बदलने वाली भारी परियोजनाओं एवं विदेशी व्यापार को वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं।
4. विकास बैंक :-
● विकास बैंक वह वित्तीय संस्थान हैं जो उद्योगों को मध्य अवधि एवं दीर्घ अवधि के लिए ऋण प्रदान करते हैं।
● स्वतंत्राता प्राप्ति के पश्चात भारत में उद्योग धन्धों का तेजी से विकास हुआ जिसमें भारी वित्तीय निवेश एवं अधिक प्रवर्तन की मांग हुई।
● इसके परिणामस्वरूप इन संस्थानों की स्थापना हुई।
● विकास बैंक उद्योग धन्धों के प्रवर्तन, विस्तार एवं आधुनिकीकरण में सहायता प्रदान करते हैं।
● मध्य अवधि एवं दीर्घ अवधि के लिए वित्त प्रदान करने के साथ-साथ यह बैंक औद्योगिक उपक्रमों में पूँजी भी लगाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर यह तकनीकी सलाह एवं सहायता भी देते हैं।
● भारत में विकास बैंक के उदाहरण हैं :-
5. केंद्रीय बैंक :-
● किसी भी देश का केंद्रीय बैंक उस देश के सभी वाणिज्यिक बैंकों की गतिविधियों का पर्यवेक्षण, नियंत्राण एवं नियमन करता है।
● यह सरकार का बैंक होता है।
● यह देश की मुद्रा एवं साख संबंधी नीतियों का नियंत्रण एवं समन्वय करता है।
● प्रत्येक देश में एक बैंक को बैंकिंग प्रणाली के मार्गदर्शन एवं नियमन का उतरदायित्व सौंपा जाता है। इसे केन्द्रीय बैंक कहते हैं।
● यह एक शीर्षस्थ बैंक होता है और इसे उच्चतम वित्तीय अधिकार प्राप्त होते हैं।
● भारत में केन्द्रीय बैंकिंग प्राधिकारी भारतीय रिजर्व बैंक है। यह जनमानस से सीधा लेन-देन नहीं करता।
● यह बैंकों का बैंक है।
● इसमें सभी बैंकों के जमा खाते होते हैं।
● यह बैंकों को आवश्यकता पड़ने पर अग्रिम राशि देता है।
● यह मुद्रा एवं साख की मात्रा का नियमन करता है एवं सभी बैंकों के मुद्रा संबंधी लेन-देनों का निरीक्षण एवं नियन्त्रण करता है।
● रिजर्व बैंक सरकार के बैंकर की भूमिका भी निभाता है और सरकारी प्राप्तियों, भुगतानों एवं विभिन्न स्त्रोतों से लिए गए ऋणों का विवरण रखता है।
● यह सरकार को मौद्रिक एवं साख नीति के विषय में सलाह देने एवं बैंकों द्वारा स्वीकार किए जाने वाली जमा राशि और दिये जाने वाले ऋणों पर ब्याज की दर का निर्धारण भी करता है।
● यह देश में मुद्रा, विदेशी मुद्रा के भंडारों, सोना एवं अन्य प्रतिभूतियों के रखवाले का कार्य भी करता है।
● रिजर्व बैंक करेन्सी नोट जारी करने और मौद्रिक आपूर्ति के नियमन का कार्य भी करता है।
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