आर्थिक sarvekshan 2021- 2022 important facts

 

आर्थिक sarvekshan 2021- 2022 important facts


आर्थिक सर्वेक्षण 2021 - 2022 ।।Arthik sarvekshan 2021 - 2022 ।। Economic Survey 2021 - 2022


आर्थिक sarvekshan 2021- 2022 important facts






केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2022 को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश करते हुए कहा कि इस वर्ष की आर्थिक समीक्षा का मूल विषय त्वरित दृष्टिकोण' है, जिसे कोविड-19 महामारी की स्थिति में भारत के आर्थिक क्रियाकलाप के माध्यम से कार्यान्वित किया गया है। इसके अलावा, आर्थिक समीक्षा की प्रस्तावना यह बताती है कि आर्थिक समीक्षा 2021-22 'समग्र दृष्टिकोण' फीडबैक, वास्तविक निष्कर्षों की तत्काल निगरानी, व्यावहारिक प्रतिक्रियाओं, सुरक्षा सम्बन्धी उपायों आदि पर आधारित है।


व्यापक क्रमिक विकास का ब्यौरा


प्रस्तावना में 1950-51 में की गई प्रथम समीक्षा से लेकर आर्थिक समीक्षाओं के व्यापक क्रमिक विकास' पर संक्षिप्त विवरण भी शामिल है। यह एक रोचक तथ्य है कि प्रथम समीक्षा के बाद एक दशक से अधिक समय तक समीक्षा के दस्तावेज को केन्द्रीय बजट में मिला दिया गया था।


हमसे जुड़ें

TELEGRAM 

SUBHSHIV

YOUTUBE

SUBHSHIV




NOTES

DOWNLOAD LINK

INSURANCE

DOWNLOAD

SEO

DOWNLOAD

REET

DOWNLOAD

REET NOTES

DOWNLOAD

LDC

DOWNLOAD

RAJASTHAN GK

DOWNLOAD

INDIA GK

DOWNLOAD

HINDI VYAKARAN

DOWNLOAD

POLITICAL SCIENCE

DOWNLOAD

राजस्थान अध्ययन BOOKS

DOWNLOAD

BANKING

DOWNLOAD

GK TEST PAPER SET

DOWNLOAD

CURRENT GK

DOWNLOAD



संक्षिप्त एवं सरल बनाने का प्रयास


हाल के वर्षों में आर्थिक समीक्षा को दो पुस्तिकाओं के रूप में प्रस्तुत किया जाता था, जिसे बदलकर इस आर्थिक समीक्षा में छोटा करके एक पुस्तिका और एक अलग सांख्यिकीय सारणियों की एक पुस्तिका के रूप में परिवर्तित करके प्रस्तुत किया गया है।


इस वर्ष की समीक्षा को बदलकर एक पुस्तिका और सांख्यिकीय सारणियों की एक अलग पुस्तिका के रूप में सीमित किया गया है। 


अर्थव्यवस्था की स्थिति


2020-21 में 7.3 प्रतिशत की गिरावट के बाद 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 9.3 प्रतिशत (पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार) बढ़ने का अनुमान है। 2022-23 में जीडीपी की विकास दर 8-8.5 प्रतिशत रह सकती है।


आईएमएफ के ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य अनुमान के तहत्, 2021-22 और 2022-23 में भारत की रियल जीडीपी विकास दर 9 प्रतिशत और 2023-24 में 7.1 प्रतिशत रहने की संभावना है, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था अगले तीन साल तक दुनिया की सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था बनी रहेगी।


2021-22 में कृषि और सम्बन्धित क्षेत्रों के 3.9 प्रतिशत; उद्योग के 11.8 प्रतिशत और सेवा क्षेत्र के 8.2 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। 


माँग की बात करें तो 2021-22 में खपत 7.0 प्रतिशत, सकल स्थायी पूँजी निर्माण (जीएफसीएफ) 15 प्रतिशत, निर्यात 16.5 प्रतिशत और आयात 29.4 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है।


बृहद आर्थिक स्थायित्व संकेतकों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है। 2020-21 में लागू पूर्ण लॉकडाउन की तुलना में दूसरी लहर' का आर्थिक प्रभाव कम रहा, हालांकि इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव काफी गम्भीर था।


भारत सरकार की विशेष प्रतिक्रिया में समाज के कमजोर तबकों और कारोबारी क्षेत्र को प्रभावित होने से बचाने के लिए सुरक्षा जाल तैयार करना, विकास दर को गति देने के लिए पूँजीगत व्यय में खासी बढ़ोतरी और टिकाऊ दीर्घकालिक विस्तार के लिए आपूर्ति के क्षेत्र में सुधार शामिल रहे।


सरकार की लचीली और बहुस्तरीय प्रतिक्रिया आंशिक रूप से 'त्वरित' रूपरेखा पर आधारित है, जिसमें बेहद अनिश्चिता के माहौल में खामियों को दूर करने पर जोर दिया गया और 80 हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स (एचएफआई) का इस्तेमाल किया गया।


राजकोषीय मजबूती


2021-22 बजट अनुमान (2020-21 के अनंतिम आंकड़ों की तुलना में) 9.6 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि की तुलना में केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियाँ (अप्रैल- -नवम्बर 2021) 67.2 प्रतिशत तक बढ़ गईं। सालाना आधार पर अप्रैल-नवम्बर 2021 के दौरान सकल कर-राजस्व में 50 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यह 2019-20 के महामारी से पहले के स्तरों की तुलना में भी बेहतर प्रदर्शन है।


टिकाऊ राजस्व संग्रह और एक लक्षित व्यय नीति से अप्रैल-नवम्बर 2021 के दौरान राजकोषीय घाटे को बजट अनुमान के 46.2 प्रतिशत के स्तर पर सीमित रखने में सफलता मिली। कोविड-19 के चलते उधारी बढ़ने के साथ 2020-21 में केन्द्र सरकार का कर्ज बढ़कर जीडीपी का 59.3 प्रतिशत हो गया, जो 2019-20 में जीडीपी के 49.1 प्रतिशत के स्तर पर था।

हालांकि अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ इसमें गिरावट आने का अनुमान है।


बाहरी क्षेत्र


भारत के वाणिज्यिक निर्यात एवं आयात ने दमदार वापसी की और चालू वित्त वर्ष के दौरान यह कोविड से पहले के स्तरों से ज्यादा हो गया। 


विदेशी निवेश में निरंतर बढ़ोतरी, सकल बाहरी क्षेत्र वाणिज्यिक उधारी में बढ़ोतरी, बैंकिंग पूँजी में सुधार और अतिरिक्त विशेष निकासी अधिकार (एसडीआर) आवंटन के दम पर 2021-22 की पहली छमाही में सकल पूँजी प्रवाह बढ़कर 65.6 बिलियन डॉलर हो गया। 


2021-22 की पहली छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से ऊपर निकल गया और यह 31 दिसम्बर, 2021 तक 633.6 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुँच गया। नवम्बर 2021 के अंत तक चीन, जापान और स्विट्जरलैण्ड के बाद भारत चौथा सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार वाला देश था।


मूल्य तथा मुद्रास्फीति


औसत शीर्ष सीपीआई-संयुक्त मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में सुधरकर 5.2 प्रतिशत हुई, जबकि 2020-21 की इसी अवधि में यह 6.6 प्रतिशत थी।खुदरा स्फीति में गिरावट खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार के कारण आई।



2021-22 (अप्रैल से दिसम्बर) में औसत खाद्य मुद्रास्फीति 2.9 प्रतिशत के निम्न स्तर पर रही, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 9.1 प्रतिशत थी।


वर्ष के दौरान प्रभावी आपूर्ति प्रबन्धन ने अधिकतर आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित रखा।


दालों और खाद्य तेलों में मूल्य वृद्धि नियंत्रित करने के लिए सक्रिय कदम उठाए गए। सैंट्रल एक्साइज में कमी तथा बाद में अधिकतर राज्यों द्वारा वैल्यू एडेड टैक्स में कटौतियों से पेट्रोल तथा डीजल की कीमतों में सुधार लाने में मदद मिली।


थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित थोक मुद्रास्फीति 2021-22 (अप्रैल से दिसम्बर) के दौरान 12.5 प्रतिशत बढ़ी।


ऐसा निम्नलिखित कारणों से हुआ :- 


1. पिछले वर्ष में निम्न आधार

2. आर्थिक गतिविधियों में तेजी

3. कच्चे तेल की अन्तर्राष्ट्रीय कीमतों में भारी वृद्धि तथा अन्य आयातित वस्तुओं तथा उच्च माल ढुलाई लागत


सतत विकास तथा जलवायु परिवर्तन 


नीति आयोग एसडीजी इंडिया सूचकांक तथा डैशबोर्ड पर भारत का समग्र स्कोर 2020-21 में सुधरकर 66 हो गया, जबकि यह 2019-20 में 60 तथा 2018-19 में 57 था।


फ्रंट रनर्स (65-99 स्कोर) की संख्या 2020-21 में 22 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों में बढ़ी, जो 2019-20 में 10 थी। नीति आयोग पूर्वोत्तर क्षेत्र जिला एसडीजी सूचकांक 2021-22 में पूर्वोत्तर भारत में 64 जिले फ्रंट रनर्स तथा 39 जिले परफॉर्मर रहे।


भारत, विश्व में दसवाँ सबसे बड़ा वन क्षेत्र वाला देश है। 2010 से 2020 के दौरान वन क्षेत्र वृद्धि के मामले में 2020 में भारत का विश्व में तीसरा स्थान रहा। 2020 में भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र में कवर किए गए वन 24 प्रतिशत रहे यानी विश्व के कुल वन क्षेत्र का 2 प्रतिशत।


अगस्त 2021 में प्लास्टिक कचरा प्रबन्धन नियम, 2021 अधिसूचित किए गए, जिसका उद्देश्य 2022 तक सिंगल यूजप्लास्टिक को समाप्त करना है।


गंगा तथा उसकी सहायक नदियों के तटों पर अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों (जीपीआई) की अनुपालन स्थिति 2017 के 39 प्रतिशत से सुधर कर 2020 में 81 प्रतिशत हो गई।


प्रधानमंत्री ने नवम्बर 2021 में ग्लासगो में आयोजित पक्षों के 26वें सम्मेलन (सीओपी-26) के राष्ट्रीय वक्तव्य के हिस्से के रूप में उत्सर्जन में कमी लाने के लिए 2030 तक प्राप्त किए जाने वाले महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की घोषणा की।


एक शब्द 'लाइफ' (पर्यावरण के लिए जीवनशैली) प्रारम्भ करने की आवश्यकता महसूस करते हुए बिना सोचे-समझे तथा विनाशकारी खपत के बदले सोचपूर्ण तथा उपयोग करने का आग्रह किया गया है।


कृषि तथा खाद्य प्रबन्धन


पिछले दो वर्षों में कृषि क्षेत्र में विकास देखा गया।देश के कुल मूल्यवर्धन (जीवीए) में महत्वपूर्ण 18.8 प्रतिशत (2021-22) की वृद्धि हुई, इस तरह 2020-21 में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 2021-22 में 3.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।


न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नीति का उपयोग फसल विविधिकरण को प्रोत्साहित करने के लिए किया जा रहा है।


पशुपालन, डेयरी तथा मछली पालन सहित सम्बन्धित क्षेत्र तेजी से उच्च वृद्धि वाले क्षेत्र के रूप में तथा कृषि क्षेत्र में सम्पूर्ण वृद्धि के प्रमुख प्रेरक के रूप में उभर रहे हैं।


2019-20 में समाप्त होने वाले पिछले पाँच वर्षों में पशुधन क्षेत्र 8.15 प्रतिशत के सीएजीआर पर बढ़ रहा। 


कृषि परिवारों के विभिन्न समूहों में यह स्थाई आय का साधन रहा है और ऐसे उन परिवारों की औसत मासिक आय का यह लगभग 15 प्रतिशत है।


अवसंरचना विकास, रियायती परिवहन तथा माइक्रो खाद्य उद्यमों के औपचारीकरण के लिए समर्थन जैसे विभिन्न उपायों के माध्यम से सरकार खाद्य प्रसंस्करण को सहायता देती है।


भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य प्रबन्धन कार्यक्रम चलाता है। सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) जैसी योजनाओं के माध्यम से खाद्य सुरक्षा नेटवर्क कवरेज का और अधिक विस्तार किया है।





उद्योग और बुनियादी ढाँचा


अप्रैल-नवम्बर 2021 के दौरान औद्योगिक उत्पादन का सूचकांक (आईआईपी) बढ़कर 17.4 प्रतिशत (वर्ष दर वर्ष) हो गया। यह अप्रैल- -नवम्बर 2020 में (-)15.3 प्रतिशत था।


भारतीय रेलवे के लिए पूँजीगत व्यय 2009-2014 के दौरान ₹45,980 करोड़ के वार्षिक औसत से बढ़कर 2020-21 में ₹155,181 करोड़ हो गया और 2021-22 में इसे ₹ 215,058 करोड़ तक बढ़ाने का बजट रखा गया है, इस प्रकार इसमें 2014 के स्तर की तुलना में पाँच गुना बढ़ोतरी हुई है।


वर्ष 2020-21 में प्रतिदिन सड़क निर्माण की सीमा को बढ़ाकर 36.5 किलोमीटर प्रतिदिन कर दिया गया है जो 2019-20 में 28 किलोमीटर प्रतिदिन थी, इस प्रकार इसमें 30.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है।


उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के शुभारम्भ से लेनदेन लागत घटाने और व्यापार को आसान बनाने के कार्य में सुधार लाने के उपायों के साथ-साथ डिजिटल और वस्तुगत दोनों बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा मिला है, जिससे रिकवरी की गति में मदद मिलेगी।



सेवाएँ


समग्र सेवा क्षेत्रजीवीए में 2021-22 में 8.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। वर्ष 2021-22 की पहली छमाही के दौरान सेवा क्षेत्र ने 16.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्राप्त किया जो भारत में कुल एफडीआई प्रवाह का लगभग 54 प्रतिशत है।


आईटी-बीपीएम सेवा राजस्व 2020-21 में 194 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुँच गया। इस अवधि के दौरान इस क्षेत्र में 1.38 लाख कर्मचारी शामिल किए गए। प्रमुख सरकारी सुधारों में आईटीबीपीओ क्षेत्र में टेलिकॉम विनियमों को हटाना और निजी क्षेत्र के दिग्गजों के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र को खोलना शामिल है।


भारत, अमेरिका और चीन के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम बन गया है। नए मान्यता प्राप्त स्टार्ट-अप्स की संख्या 2021-22 में बढ़कर 14 हजार से अधिक हो गई है, जो 2016-17 में केवल 735 थी। 


44 भारतीय स्टार्ट-अप्स ने 2021 में यूनिकॉर्न दर्जा हासिल किया इससे यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप्स की कुल संख्या 83 हो गई है और इनमें से अधिकांश सेवा क्षेत्र में हैं।


आर्थिक समीक्षा में इस बात को रेखांकित किया गया है कि वैश्विक सेवा निर्यात में भारत का प्रमुख स्थान रहा। वर्ष 2020 में वह शीर्ष 10 सेवा निर्यातक देशों में बना रहा। विश्व वाणिज्यिक सेवाओं के निर्यात में इसकी भागीदारी वर्ष 2019 में 3.4 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 4.1 प्रतिशत हो गई।


सामाजिक बुनियादी ढाँचा और रोजगार


16 जनवरी, 2022 तक कोविड-19 टीके की 157.94 करोड़ खुराक दी जा चुकी हैं। इसमें 91.39 करोड़ पहली खुराक और 66.05 करोड़ दूसरी खुराक शामिल हैं। 


अर्थव्यवस्था के पुनरुत्थान से रोजगार सूचकांक वर्ष 2020-21 की अंतिम तिमाही के दौरान वापस पूर्व-महामारी स्तर पर आ गए हैं।


मार्च 2021 तक प्राप्त तिमाही आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (पीएफएलएस) आँकड़ों के अनुसार महामारी के कारण प्रभावित शहरी क्षेत्र में रोजगार लगभग पूर्व महामारी स्तर तक वापस आ गए हैं।


सामाजिक सेवाओं (स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य) पर जीडीपी के अनुपात के रूप में केन्द्र और राज्यों का व्यय जो 2014-15 में 6.2 प्रतिशत था 2021-22 (बजट अनुमान) में बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो गया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार


1. कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2019-21 में घटकर 2 हो गई जो 2015-16 में 2.2 थी।

2. शिशु मृत्यु-दर (आईएमआर), पाँच साल से कम शिशुओं की मृत्यु-दर में कमी हुई है और अस्पतालों/प्रसव केन्द्रों में शिशुओं के जन्म में 2015-16 की तुलना में 2019-21 में सुधार हुआ है।


सामाजिक क्षेत्र पर व्यय


वर्ष 2021-22 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार महामारी के दौरान सामाजिक सेवाओं पर सरकार के खर्च में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। 2020-21 की तुलना में वर्ष 2021-22 में सामाजिक सेवा क्षेत्र के व्यय आवंटन में 9.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि केन्द्र तथा 22 (बजट अनुमान) में सामाजिक सेवा क्षेत्र पर खर्च के लिए कुल ₹71.61 लाख करोड़ निर्धारित किए।पिछले पाँच वर्षों के दौरान कुल सरकारी व्यय में सामाजिक सेवाओं का हिस्सा लगभग 25 प्रतिशत रहा। यह 2021-22 (बजट अनुमान) में 26.6 प्रतिशत था।


स्वास्थ्य व शिक्षा पर व्यय में वृद्धि


आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यय 2019-20 के ₹ 2.73 लाख करोड़ की तुलना में 2021-22 (बजट अनुमान) में बढ़कर ₹ 4.72 लाख करोड़ हो गया। इस तरह इसमें लगभग 73 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। समीक्षा में कहा गया है कि शिक्षा क्षेत्र के लिए समान अवधि में यह वृद्धि 20 प्रतिशत की रही।



बारबेल रणनीति


परिवर्तनशील वायरस की नई लहरों, यात्रा प्रतिबन्ध, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान और हाल ही में वैश्विक मुद्रास्फीति के चलते पिछले दो साल दुनिया भर में नीति निर्माण के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रहे हैं। इन सभी अनिश्चितताओं का सामना करते हुए भारत सरकार ने 'बारबेल स्ट्रैटेजी' का विकल्प चुना, जिसमें समाज/व्यवसाय के कमजोर वर्गों पर प्रभाव को कम करने के लिए सुरक्षा जाल का गठन किया गया।




3

आर्थिक सर्वेक्षण से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य


बजट से पहले केन्द्र सरकार आर्थिक सर्वेक्षण या इकोनॉमिक सर्वे (Economic Survey) पेश करती है। इस साल का बजट सत्र 31 जनवरी को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण के साथ शुरू हुआ। उसके बाद वित्तमंत्री ने सदन में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया।


क्या होता है इकोनॉमिक सर्वे?


इकोनॉमिक सर्वे देश के आर्थिक विकास का लेखा-जोखा होता है, जिसके आधार पर यह देखा जाता है कि गत एक वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था किस तरह की रही है।


इसके साथ ही अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में फायदे अथवा नुकसान का आकलन भी इस सर्वे में लगाया जाता है। यह वित्त मंत्रालय का प्रमुख वार्षिक दस्तावेज होता है। आर्थिक सर्वेक्षण की हमेशा एक थीम होती है।


वर्ष 2020-21 की थीम 'जीवन और आजीविका बचाना' था। 2017-18 में आर्थिक सर्वेक्षण की थीम गुलाबी थी क्योंकि इसका विषय 'महिला सशक्तीकरण' से जुड़ा था।


इकोनॉमिक सर्वे को हमेशा बजट से ठीक पहले प्रस्तुत किया जाता है। इकोनॉमिक सर्वे के आधार पर यह तय किया जाता है कि आने वाले वर्ष में अर्थव्यवस्था में किस तरह सम्भावनाएँ देखने को मिलेंगी। आर्थिक सर्वेक्षण में पिछले 12 महीनों की अर्थव्यवस्था की विकास की समीक्षा होती है। प्रमुख विकास कार्यक्रमों का सारांश होता है।


कौन तैयार करता है इकोनॉमिक सर्वे ?


आर्थिक सर्वेक्षण वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के इकोनॉमिक्स डिविजन के द्वारा तैयार किया जाता है।


यह मुख्य आर्थिक सलाहकार की देख-रेख में तैयार किया जाता है। इसको वित्तमंत्री की मंजूरी के बाद ही जारी किया जाता है।


पहली बार कब पेश हुआ इकोनॉमिक सर्वे


भारत में पहली बार इकोनॉमिक सर्वे साल 1950-51 में पेश किया गया था। साल 1964 तक इसको केन्द्रीय बजट के साथ ही पेश किया जाता था।


वहीं, 1964 में इसको बजट से अलग कर दिया गया। साल 2015 के बाद इकोनॉमिक सर्वे को दो हिस्सों मे बाँटा गया।


पहले हिस्से में अर्थव्यवस्था की स्थिति बताई जाती है, जिसे आम बजट से पहले जारी किया जाता है। दूसरे हिस्से में अहम फैक्ट होते हैं।


वी. अनंत नागेश्वरन ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश होने के कुछ दिन पहले ही मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद संभाला है।


यही वजह है कि इस बार का आर्थिक सर्वेक्षण मुख्य आर्थिक सलाहकार ने नहीं बल्कि प्रमुख आर्थिक सलाहकार और अन्य अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया है।


इसकी वजह यह है कि कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम का कार्यकाल गत वर्ष दिसम्बर में समाप्त होने के बाद से यह पद खाली था।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ