Rajasthan ka ekikaran | राजस्थान का एकीकरण नोट्स hindi PDF

Rajasthan ka ekikaran | राजस्थान का एकीकरण नोट्स hindi PDF



Rajasthan ka ekikaran Notes / राजस्थान का एकीकरण नोट्स in hindi PDF


प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए किसी भी विषय से सम्बंधित सामग्री को सिर्फ एक बार पढ़ना ही पर्याप्त नहीं होता हैं, बार बार पढ़ना पड़ता हैं। बार बार पढ़ने से मतलब रटना नहीं हैं बल्कि  उसे समझना हैं।


नमस्कार दोस्तों मैं हु सुभशिव और स्वागत है आपका हमारी वेबसाइट SUBHSHIV पर


आज हम आपके लिए लेकर आए हैं, Rajasthan Gk का अति महत्वपूर्ण टॉपिक Rajasthan ka ekikaran दोस्तों Rajasthan ka ekikaran टॉपिक से हर एग्जाम में questions पूछे जाते है।


इस टॉपिक की इंपोर्टेंस को देखते हुए हम लाए हैं आपके लिए Rajasthan ka ekikaran के अति महत्वपूर्ण नोट्स जो कि subject  के एक्सपर्ट के द्वारा तैयार किए गए हैं 


तो दोस्तों हम आशा करते हैं की यह नोट्स आपके लिए उपयोगी साबित होंगे 


अगर नोट्स अच्छे लगे तो  शेयर कीजिए और सुझाव और शिकायत के लिए हमें कमेंट करके बताइए

                        धन्यवाद


ये  नोट्स PDF FORMAT में DOWNLOAD करने के लिए निचे अन्त  में  दिए गये  DOWNLOAD BUTTON पर CLICK करें


POST अच्छी लगे तो शेयर जरूर करें ।


हमसे जुड़ें

TELEGRAM 

SUBHSHIV

YOUTUBE

SUBHSHIV



NOTES

DOWNLOAD LINK

REET

DOWNLOAD

REET NOTES

DOWNLOAD

LDC

DOWNLOAD

RAJASTHAN GK

DOWNLOAD

INDIA GK

DOWNLOAD

HINDI VYAKARAN

DOWNLOAD

POLITICAL SCIENCE

DOWNLOAD

राजस्थान अध्ययन BOOKS

DOWNLOAD

BANKING

DOWNLOAD

GK TEST PAPER SET

DOWNLOAD

CURRENT GK

DOWNLOAD



यह भी पढ़े :-  


राजस्थान का ekikaran

राजस्थान का एकीकरण 

● 15 अगस्त 1947 ई. को भारत आज़ाद हुआ। 

● परन्तु भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 की आठवीं धारा के अनुसार  ब्रिटिश सरकार की भारतीय देशी रियासतों पर स्थापित सर्वोच्चता पुनः देशी रियासतों को हस्तांतरित कर दी गयी। 

● इसका तात्पर्य था कि देशी रियासतें स्वयँ इस बात का निर्णय  करेंगी कि वह किसी अधिराज्य में (भारत अथवा पाकिस्तान में) अपना अस्तित्व रखेंगी। 

● यदि कोई रियासत किसी अधिराज्य में शामिल न हो तो वह स्वतंत्र राज्य के रूप में भी अपना अस्तित्व  रख सकती थी।

● यदि ऐसा होने दिया जाता है तो भारत अनेक छोटे-छोटे खंडो में विभक्त हो जाता एवं भारत की एकता समाप्त हो जाती। 

● तत्कालीन भारत सरकार का राजनैतिक विभाग जो अब तक देशी रियासतों पर नियंत्रण रखता था, समाप्त कर दिया गया और 5 जुलाई 1947 को सरदार बल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में रियासत सचिवालय या रियासत विभाग गठित किया गया। 

रियासत सचिवालय सभी छोटी बड़ी रियासतों का विलीनीकरण या समूहीकरण चाहता था। 

● इन रियासतों का समूहीकरण इस प्रकार किया जाना था कि भाषा, संस्कृति और भौगोलिक सीमा की दृष्टि से एक संयुक्त राज्य संगठित हो सके।

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राजस्थान में 19 रियासतें व 3 ठिकाने थे।  

● इसके अलावा अजमेर-मेरवाड़ा का छोटा सा क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत था। 

● इन सभी रियासतों तथा ब्रिटिश शासित क्षेत्र को मिलाकर एक इकाई के रूप में संगठित करने की अत्यन्त विकट समस्या थी। 

सितम्बर 1946 ई. को अखिल भारतीय देशी राज्य लोक-परिषद ने निर्णय लिया था कि समस्त राजस्थान को एक इकाई के रूप में भारतीय संघ में शामिल होना चाहिए। 

● इधर भारत सरकार के रियासत सचिवालय ने निर्णय लिया कि स्वतंत्र भारत में वे ही रियासतें अपना पृथक अस्तित्व रख सकेंगी जिनकी आय एक करोड़ रुपये वार्षिक एवं जनसंख्या दस लाख या उससे अधिक हो।

● इस मापदण्ड के अनुसार राजस्थान में केवल  जोधपुर, जयपुर, उदयपुर एवं बीकानेर ही इस शर्त को पूरा करते थे। 

राजस्थान की छोटी रियासतें यह तो अनुभव कर रही थी कि स्वतंत्र भारत में आपस में मिलकर स्वावलम्बी इकाइयाँ बनाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है, परन्तु ऐतिहासिक तथा कुछ अन्य कारणों से शासकों में एक दूसरे के प्रति अविश्वास एवं ईष्र्या भरी हुई थी। 


राजस्थान एकीकरण में प्रमुख बाधाएं  / राजस्थान एकीकरण में प्रमुख बाधाएं क्या थी ?:- 

राजस्थान के एकीकरण की प्रमुख बाधा या  समस्या उसका भौतिक स्वरूप तथा भाषाई आधार था।

● इसके अलावा राजस्थान के एकीकरण में बाधा उसकी रियासतों की समस्याएं दी थी जो निम्न प्रकार से है :- 

रियासतों  की समस्याएँ

(1) स्वतंत्रता एवं विभाजन के पश्चात् हुए सांप्रदायिक झगड़े मुख्य कारण थे। 

(2) अलवर व भरतपुर में मेव जाति की समस्या पुनः उभर कर आई। 

(3) गाँधी जी की हत्या में अलवर राज्य का नाम आने से भी अलवर विवादित था।

(4) जोधपुर की भौगोलिक एवं सामाजिक स्थिति अत्यन्त ही महत्वपूर्ण थी। 

(5) पाकिस्तान की तरफ से जोधपुर को अपनी तरफ मिलाने की चर्चा भी गरम थी।

(6) मेवाड़ के महाराणा एवं जागीरदार वर्ग अपनी गौरवपूर्ण ऐतिहासिक स्थिति के कारण संघ में विलय के इच्छुक नहीं थे।

(7) उधर बीकानेर भी सीमांत राज्य होने के कारण भारत के लिए अत्यन्त महत्तवपूर्ण प्रदेश था। 

(8) यद्यपि भारत की संविधान निर्मात्री सभा में बीकानेर का प्रतिनिधित्व था, फिर भी शासक का मन स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखने का ही था।


● बदलती हुई राजनीतिक परिस्थिति में मेवाड़ महाराणा द्वारा 25 जून 1946 ई. को जयपुर में राजस्थानी राजाओं का एक सम्मेलन आयोजित किया गया।

● जिसका उद्देश्य एक संघ बनाना था। किन्तु समस्त शासक एक मत न हो सके इसलिए महाराणा की योजना सफल न हो सकी। 

● इसी प्रकार डूँगरपुर के शासक ने भी बागड़ राज्य (डूँगरपुर, बांसवाड़ा व प्रतापगढ़) बनाने का असफल प्रयास किया। 

● जयपुर व कोटा के शासकों के प्रयास भी असफल रहे। 

● फलस्वरूप भारत सरकार के रियासत विभाग द्वारा सभी रियासतों को मिलाकर एकीकृत राजस्थान का गठन करने का निश्चय किया गया। 

● इस कार्य के लिए अत्यन्त बुद्धिमानी, दूरदर्शिता, संयम एवं कूटनीति की आवश्यकता थी और इसलिए यह कार्य बड़ी सावधानी से धीरे-धीरे सम्पन्न किया गया। 

राजस्थान का एकीकरण सात चरणों में सम्पन्न हुआ था। जो  इस प्रकार से है  :-

1.मत्स्य संघ ( 18 मार्च 1948) :-

राज्य :- अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली निमराणा (ठिकाना)

राजप्रमुख :- धौलपुर के शासक उदयभान सिंह

● प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री :- श्री शोभाराम कुमावत

● भौगोलिक जातीय, आर्थिक दृष्टिकोण से अलवर,भरतपुर, धौलपुर व करौली एक से थे। 

● चारों राज्यों के शासको को  27 फरवरी 1948 को दिल्ली बुलाकर उनके समक्ष संघ का प्रस्ताव रखा गया, जिसे सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। 

श्री के.एम. मुंशी के सुझाव पर इस संघ का नाम मत्स्य संघ रखा गया । जैसा कि महाभारत काल में इस क्षेत्र का नाम था। 

● 28 फरवरी 1948 को दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए गये। 

18 मार्च 1948 को इस संघ का उद्घाटन केन्द्रीय मंत्री एन.वी. गाडगिल ने किया। 

● संघ की जनसंख्या 18 लाख व वार्षिक आय 1.84 करोड़(RBSC की किताब में यह आंकड़ा 2 करोड़ लिखा मिलता है तो कहीं कहीं 1.83 करोड़ भी लिखा मिलता है पर सही आंकड़ा 1.84 करोड़ माना जाता है) रूपये थी।

● धौलपुर के महाराज उदयभान सिंह को राजप्रमुख नियुक्त कर एक मंत्रिमण्डल का गठन किया गया। 

शोभाराम (अलवर) को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया एवं संघ में शामिल चारों राज्यों में से एक-एक सदस्य लेकर मंत्रिमण्डल बनाया गया। 

● गोपीलाल यादव (भरतपुर), मास्टर भोलानाथ (अलवर), डाॅ. मंगल सिंह (धौलपुर), चिरंजीलाल शर्मा (करौली) ने शपथ ली।

2. संयुक्त राजस्थान ( 25 मार्च 1948) :-

राज्य :- कोटा, बूँदी, झालावाड़,डूँगरपुर, बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़, शाहपुरा, किशनगढ़, टोंक कुशलगढ़ (ठिकाना)

● राजप्रमुख :- कोटा नरेश भीम सिंह

● प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री :- श्री गोकुल लाल असावा

कोटा, झालावाड़ व डूँगरपुर के शासकों ने एक हाड़ौती संघ बनाने का विचार किया एवं 3 मार्च 1948 को दिल्ली में इन तीनों शासकों ने संघ का विचार स्वीकार कर लिया। 

● यही राय बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ व डूँगरपुर के राज्यों की भी बनी। 

● स्थानीय प्रजामंडलों का दबाव भी लगातार संघ के पक्ष में बन रहा था।

शाहपुरा व किशनगढ़ दो ऐसी रियासतें थी जिन्होंने पूर्व में अजमेर-मेरवाडा में विलय के प्रयास का विरोध किया था। 

● ये रियासतें राजस्थान की अन्य रियासतों के संघ में मिलने के इच्छुक थे। 

● इसीलिए इन्होंने संयुक्त राजस्थान  में सम्मिलित होना स्वीकार कर लिया। 

● इस प्रकार संयुक्त राजस्थान में 9 राज्य थे:-

 (1) बांसवाड़ा (2) डूँगरपुर (3) प्रतापगढ़ (4) कोटा (5) बूँदी (6) झालावाड़ (7) किशनगढ़ (8) शाहपुरा (9) टोंक

● इस संघ का क्षेत्रफल 16807 वर्ग मील, आबादी 23.5 लाख एवं आय 1.90 करोड़ रूपये वार्षिक थी।

● प्रस्तावित नए संघ के क्षेत्र के मध्य में मेवाड़ की रियासत पड़ती थी। 

● यद्यपि रियासत विभाग के मापदण्डानुसार मेवाड़ अपना पृथक अस्तित्व रख सकता था। फिर भी रियासत विभाग ने मेवाड़ को इस संघ में शामिल होने का निमंत्रण दिया। 

● किन्तु मेवाड़ के महाराणा भूपाल सिंह तथा मेवाड़ राज्य के दीवान सर एस.वी. राममूर्ति ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि 

मेवाड़ का 1300 वर्ष पुराना राजवंश अपनी गौरवशाली परम्पराओं को तिलांजलि देकर भारत के मानचित्र पर अपना अस्तित्व 

समाप्त नहीं कर सकता।

मेवाड़ राज्य के उपर्युक्त रवैये को देखते हुए रियासत विभाग ने निर्णय लिया कि फिलहाल उदयपुर को छोड़कर दक्षिण पूर्व राजस्थान की रियासतों को मिलाकर ‘‘संयुक्त राजस्थान’’ का निर्माण कर लिया जाए। 

● प्रस्तावित संयुक्त राजस्थान में कोटा 

सबसे बड़ी रियासत थी। 

● अतः निर्णय हुआ कि ‘‘संयुक्त राजस्थान’’ के राजप्रमुख का पद कोटा के महाराज भीमसिंह को  दिया जाए और 25 मार्च 1948 को श्री एन.वी. गाडगिल इस नये संघ का उद्घाटन करें।

● कोटा के महाराज भीमसिंह को राजप्रमुख का पद दिया जाना, वरिष्ठता, क्षेत्रफल व महत्त्व के आधार पर बूँदी के महाराज बहादुर सिंह को स्वीकार्य नहीं था 

● क्योंकि कुलीय परम्परा में उसका कोटा से स्थान ऊँचा था। 

● अतः बूँदी महाराव ने मेवाड़ के महाराणा से नए राज्य में शामिल होने की प्रार्थना की ताकि उदयपुर के महाराज राजप्रमुख बन जायेंगे, 

जिससे बूँदी महाराज की कठिनाइयों का स्वतः निराकरण हो  जायेगा। किन्तु महाराणा ने बूँदी महाराज को भी वही उत्तर दिया जो उन्होंने कुछ दिनों पहले रियासत विभाग को दिया था। 

● अन्त में विवश होकर बूँदी महाराव ने कोटा महाराज का संयुक्त राजस्थान  के राजप्रमुख बनाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 

बूँदी महाराव का सम्मान बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने बूँदी महाराव को उप - राजप्रमुख तथा डूँगरपुर के महाराव को उप - राजप्रमुख बनाने का निर्णय किया। 

● इन नौ राज्यों का एक संक्षिप्त संविधान 

तैयार किया गया और इसका उद्घाटन 25 मार्च 1948 को होना तय हुआ।

● इधर मेवाड़ के संयुक्त राजस्थान में शामिल न होने के फैसले का मेवाड़ में तीव्र विरोध हुआ।

मेवाड़ प्रजामण्डल के प्रमुख नेता एवं संविधान निर्मात्री समिति के सदस्य श्री माणिक्य लाल वर्मा ने कहा कि - मेवाड़ की 20 लाख जनता के भाग्य का फैसला अकेले महाराणा साहब और उसके प्रधान सर राममूर्ति नहीं कर 

सकते। 

प्रजा मण्डल की यह स्पष्ट नीति है कि मेवाड़ अपना अस्तित्व समाप्त कर राजपूताना प्रान्त का एक अंग बन जाये। 

● किन्तु महाराणा अपने निश्चय पर अटल रहे।

● शीघ्र ही मेवाड़ की राजनैतिक परिस्थितियाँ पलटी। 

● मेवाड़ में मंत्रिमण्डल के गठन को 

लेकर प्रजामण्डल एवं मेवाड़ सरकार के बीच गतिरोध उत्पन्न हो गया। 

● अतः राज्य में उत्पन्न राजनैतिक गतिरोध को समाप्त करने के लिए महाराणा ने 23 मार्च 1948 को मेवाड़ को संयुक्त राजस्थान में शामिल करने के अपने इरादे की सूचना भारत 

सरकार को भेजते हुए संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन की तारीख 25 मार्च को आगे बढ़ाने का आग्रह किया। 

● चूँकि विलय की प्रक्रिया  एवं उद्घाटन की सभी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी अतः ऐन वक्त 

पर कार्यक्रमों में परिवर्तन न करते हुए श्री गाडगिल ने संयुक्त राजस्थान का विधिवत उद्घाटन किया। 

● श्री गोकुल प्रसाद असावा को प्रधानमंत्री बनाया गया। 

● किन्तु भारत सरकार की सलाह पर मंत्रिमण्डल के गठन का कार्य स्थगित कर दिया गया।


3. संयुक्त राजस्थान - मेवाड़ का संयुक्त राजस्थान में विलय (18 अप्रेल 1948):-

राज्य :- द्वितीय चरण के राज्य + उदयपुर (मेवाड़)

● राजप्रमुख :- उदयपुर (मेवाड़) के महाराणा भूपाल सिंह

● प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री :- श्री माणिक्य लाल वर्मा

संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के तीन दिन बाद संयुक्त राजस्थान में मेवाड़ विलय के प्रश्न पर वार्ता आरम्भ हुई। 

● सर राममूर्ति ने भारत सरकार को महाराणा की प्रमुख तीन मांगो  से अवगत कराया। 

पहली - महाराणा को संयुक्त राजस्थान का 

वंशानुगत राजप्रमुख बनाया जाए

दूसरी - उन्हें 20 लाख रुपये वार्षिक प्रिवी-पर्स दिया जाए 

तीसरी - यह कि उदयपुर को संयुक्त राजस्थान की राजधानी बनाया जाए। 

रियासत विभाग ने संयुक्त राजस्थान के शासकों से बात करके मेवाड़ को संयुक्त 

राजस्थान में विलय करने का निश्चय किया।

महाराणा को आजीवन राजप्रमुख मान लिया गया। 

● यह पद महाराणा की मृत्यु के बाद समाप्त होना तय माना गया। 

संयुक्त राजस्थान की राजधानी उदयपुर रखी गयी किन्तु विधानसभा का प्रतिवर्ष एक अधिवेशन कोटा में रखना निश्चित 

हुआ। 

मेवाड़ के महाराणा ने प्रिवीपर्स 20 लाख रुपये माँगे थे। 

● इसके जवाब में प्रिवीपर्स तो 10 लाख ही रखा गया किन्तु वार्षिक अनुदान के रूप में 5 लाख रुपये व धार्मिक अनुष्ठान के लिए 5 

लाख रुपये स्वीकृत किये गये। 

11 अप्रैल 1948 को मेवाड़ ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए।

इस संघ का उद्घाटन पं. नेहरू ने 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर में किया। 

मेवाड़ के महाराणा राज प्रमुख, कोटा के महाराज वरिष्ठ उप राजप्रमुखबूँदीडूँगरपुर के शासक कनिष्ठ उप राजप्रमुख घोषित किए गए। 

प्रधानमंत्री माणिक्यलाल वर्मा ने पंण्डित नेहरू एवं सरदार पटेल के परामर्श पर अपने मंत्रिमण्डल का गठन किया। 

मंत्रिमण्डल में गोकुल प्रसाद असावा (शाहपुरा), प्रेमनारायण माथुर, भूरेलाल बया और मोहन लाल सुखाडिया (सभी उदयपुर), भोगीलाल पंड्या (डूँगरपुर), अभिन्न गिरी (कोटा) एवं बृजसुन्दर शर्मा (बूँदी) थे। 

● इस प्रकार राजस्थान एकीकरण का तीसरा चरण भी पूरा हुआ।


4. वृहत राजस्थान (30 मार्च 1949):-

राज्य :- तृतीय चरण के राज्य + जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर व लावा (ठिकाना) 

● महाराजप्रमुख  :-उदयपुर (मेवाड़) के महाराणा भूपाल सिंह

● राजप्रमुख :- जयपुर नरेश सवाई मानसिंह

● प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री :- श्री हीरालाल शास्त्री

मेवाड़ के विलय के साथ ही शेष बचे राज्यों का विलय आसान व निष्चित हो गया। 

जयपुर, जोधपुर, बीकानेर व जैसलमेर में विलय एवं एकीकरण का जनमत और भी तेज हो गया। 

जोधपुर, बीकानेर एवं जैसलमेर राज्यों की सीमाएँ  पाकिस्तान की सीमा से मिली हुई थी, जहाँ से सदैव आक्रमण का भय बना रहता था।

● फिर यातायात एवं संचार साधनों की दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफी पिछड़ा हुआ था, जिसका विकास करना इन राज्यों के आर्थिक सामर्थ्य के बाहर था। 

समाजवादी दल के नेता  डाॅ. जयप्रकाश नारायण ने 9 नवम्बर 1948 को एक सार्वजनिक  सभा में अविलम्ब वृहद राजस्थान के निर्माण की माँग की। 

अखिल भारतीय स्तर पर ‘‘राजस्थान आंदोलन समिति’’ का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष डाॅ. राम मनोहर लोहिया ने भी एकीकृत राजस्थान की माँग की थी।

रियासत विभाग के सचिव श्री वी.पी. मेनन ने संबंधित शासकों से वार्ता शुरू की। 

● वे 11 जनवरी 1949 को जयपुर गए एवं जयपुर महाराज से वार्ता की। 

जयपुर महाराज सवाई मानसिंह काफी हिचकिचाहट एवं समझाने बुझाने के बाद वृहत 

राजस्थान के लिए तैयार हुए किन्तु यह शर्त रखी कि जयपुर महाराजा को वृहद राजस्थान का वंशानुगत राजप्रमुख बनाया जाए तथा जयपुर को भावी राजस्थान की राजधानी बनाया जाये। 

मेनन ने विलय की शर्तों पर बाद में विचार करने का आश्वासन देकर विलय की बात स्वीकार कर ली। 

● विलय के प्रारूप की जयपुर महाराजा की स्वीकृति के बाद तार द्वारा इसकी सूचना बीकानेर और जोधपुर को भेज दी गयी।

बीकानेर एवं जोधपुर के शासकों ने काफी आनाकानी के बाद विलय के प्रारूप की 

स्वीकृति दे दी। 

14 जनवरी 1949 को सरदार पटेल ने उदयपुर की एक आम सभा में वृहत राजस्थान के निर्माण की घोषणा कर दी।

मेवाड़ के महाराणा को आजीवन महाराज प्रमुख घोषित किया गया। 

जयपुर के शासक को राजप्रमुख, जोधपुरकोटा के शासकों को वरिष्ठ उप राजप्रमुखबूँदी व डूँगरपुर के शासकों को कनिष्ठ उप राजप्रमुख बनाया गया। 

● राजप्रमुख व उसके मंत्रिमण्डल को केन्द्रीय सरकार के सामान्य नियन्त्रण में रखा गया।

● राजप्रमुख को नये संविलयन पत्र पर हस्ताक्षर करके संविधान सभा द्वारा संघीय व समवर्ती सूचियों को स्वीकार करना था। 


राजस्थान दिवस कब मनाया जाता है :-

सरदार पटेल ने नई संगठित इकाई का उद्घाटन 30 मार्च 1949 को किया जिसे वर्तमान में राजस्थान दिवस के रूप में मनाया जाता है।

श्री हीरालाल शास्त्री ने 4 अप्रैल 1949 को 

मंत्रिमण्डल की कमान संभाली जिसमें श्री सिद्धराज ढड्ढा (जयपुर), प्रेमनारायण माथुर (उदयपुर), भूरेलाल बया (उदयपुर), फूलचन्द बापना (जोधपुर), नरसिंह कछवाहा (जोधपुर), राव राजा हनुमंत सिंह (जोधपुर), रघुवर दयाल गोयल (बीकानेर) व वेदपाल त्यागी (कोटा) सम्मिलित थे। 

जयपुर के शासक को 18 लाख रूपये, जोधपुर शासक को 17.5 लाख रूपये, बीकानेर शासक को 17 लाख रूपये, जैसलमेर शासक को 2.8 लाख रुपये प्रिवीपर्स के रूप में स्वीकृत किए गए। 

जयपुर को राजधानी घोषित किया गया तथा राजस्थान के बड़े नगरों का महत्व बनाये रखने के लिए कुछ राज्य स्तर के सरकारी कार्यालय यथा हाईकोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में, खनिज विभाग उदयपुर में तथा कृषि विभाग भरतपुर में स्थापित किए गए।



NOTES

DOWNLOAD LINK

REET

DOWNLOAD

REET NOTES

DOWNLOAD

LDC

DOWNLOAD

RAJASTHAN GK

DOWNLOAD

INDIA GK

DOWNLOAD

HINDI VYAKARAN

DOWNLOAD

POLITICAL SCIENCE

DOWNLOAD

राजस्थान अध्ययन BOOKS

DOWNLOAD

BANKING

DOWNLOAD

GK TEST PAPER SET

DOWNLOAD

CURRENT GK

DOWNLOAD

5. वृहत राजस्थान - मत्स्य संघ का वृहत राजस्थान में विलय(15 मई 1949):- 

राज्य :- प्रथम व चतुर्थ चरण के राज्य

● महाराजप्रमुख  :-उदयपुर (मेवाड़) के महाराणा भूपाल सिंह

● राजप्रमुख :- जयपुर नरेश सवाई मानसिंह

● प्रधानमंत्री/ मुख्यमंत्री :-

● मत्स्य संघ के निर्माण के समय मत्स्य संघ में सम्मिलित होने वाले चारों राज्यों के शासकों को यह स्पष्ट कर दिया गया था कि भविष्य में यह संघ, राजस्थान अथवा उत्तर प्रदेश में विलीन किया जा सकता है। 

● इधर मत्स्य संघ स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहा  था किन्तु सरकार कई समस्याओं से घिरी थी।

● मेवों का उपद्रव सरकार के लिए चिंता का विषय थी। 

भरतपुर किसान सभा एवं नागरिक सभा द्वारा सरकार विरोधी आन्दोलन भी चरम सीमा पर था। 

● भरतपुर किसान सभा ने बृजप्रदेश नाम से भरतपुर, धौलपुर के अलग अस्तित्व की माँग रखी। 

● अब यह आशंका व्याप्त होने लगी कि कहीं मत्स्य संघ का ही विघटन न हो जाये। 

● इस आशंका को मध्य नजर रखते हुए चारों राज्यों के शासकों तथा प्रधानमंत्रियों को 

बातचीत के लिए 10 मई 1949 ई. को दिल्ली बुलाया गया। 

● विचारणीय बिन्दु यह था कि ये राज्य निकटवर्ती राज्य उत्तर प्रदेश में विलीन होगें अथवा राजस्थान में। 

● जहाँ अलवर व करौली राजस्थान में विलय के पक्ष में वे वहीं भरतपुर और धौलपुर उत्तर 

प्रदेश में विलय के इच्छुक थे। 

● समस्या के समाधान के लिए श्री शंकर राव देव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गयी।

● इस समिति की सिफारिश के अनुसार भरतपुर व धौलपुर का जनमत राजस्थान में विलय के पक्ष में था।

15 मई 1948 को मत्स्य संघ राजस्थान में सम्मिलित हो गया।

पं. हीरालाल शास्त्री राजस्थान के प्रधानमंत्री बने रहे तथा मत्स्य संघ के प्रधानमंत्री श्री शोभाराम को शास्त्री मंत्रिमण्डल में शामिल कर लिया गया

● इस प्रकार मत्स्य संघ भी राजस्थान का एक अंग बन गया।

6. वृहत राजस्थान - सिरोही का विलय (26 जनवरी 1950):- 

राज्य :- पंचम चरण के राज्य + सिरोही (आबू व देलवाड़ा को छोड़कर)

● राज्यपाल :-  गुरूमुख निहाल सिंह

गुजरात के नेता सिरोही स्थित माउण्ट आबू के पर्यटक केन्द्र को गुजरात का अंग बनाना चाहते थे। 

● अतः नवम्बर 1947 ई. में ही सिरोही को भी गुजरात स्टेट्स एजेन्सी के अन्तर्गत कर

दिया गया था। 

10 अप्रैल 1948 को हीरालाल शास्त्री ने सरदार पटेल को पत्र लिखा कि सिरोही का अर्थ है गोकुल भाई और ‘‘बिना गोकुल भाई के हम राजस्थान को नहीं चला सकते।

● इस बीच सिरोही के प्रश्न को लेकर राजस्थान की जनता में काफी उत्तेजना फैल चुकी थी। 

18 अप्रैल 1948 को संयुक्त राजस्थान 

के उद्घाटन के अवसर पर राजस्थान के कार्यकर्ताओं का एक शिष्टमंडल पं. नेहरू से मिला और उन्हें सिरोही के सम्बन्ध में प्रदेश की जन भावनाओं से अवगत कराया। 

पं. नेहरू की सरदार पटेल से वार्ता के पश्चात् अत्यन्त चतुराई से जनवरी 1950 में माउण्ट आबू सहित सिरोही का 304 वर्ग मील क्षेत्र के 89 गाँव गुजरात मेंशेष सिरोही राजस्थान में मिला दिया गया। 

● इस प्रकार सिरोही के प्रमुख आकर्षण देलवाड़ा एवं माउण्ट आबू तो गुजरात में मिल गए और गोकुल भाई भट्ट के जन्म स्थान हाथल सहित सिरोही का शेष भाग राजस्थान को दे दिया गया। 

● इस कदम का राजस्थान में तीव्र विरोध हुआ जिसका नेतृत्व मुख्यतः गोकुल भाई भट्ट ने किया। 

राजस्थान के नेतृत्व ने पं. नेहरू से इस समस्या के समाधान के लिए दबाव बनाया।

● अंततः इसके निपटारे के लिए इस प्रकरण को राज्य पुनर्गठन आयोग को सौंप दिया गया।

7. राजस्थान -सिरोही के देलवाड़ा एवं माउण्ट आबू अजमेर मेरवाड़ा का विलय (1 नवम्बर 1956):-

राज्य :- षष्ठम चरण के राज्य  + अजमेर, माउण्ट आबू, देलवाडा व सुनेल टप्पा

● ब्रिटिश काल में अजमेर-मेरवाड़ा एक केन्द्रशासित प्रदेश रहा था। 

अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की राजपूताना प्रान्तीय सभा सदैव यह माँग करती रही कि वृहत राजस्थान में न केवल प्रान्त की सभी रियासतें वरन् अजमेर मेरवाड़ा का इलाका भी शामिल किया जाए किन्तु दूसरी ओर अजमेर का कांग्रेस नेतृत्व इस माँग का विरोध कर रहा था। 

● 1952 ई. के आम-चुनावों के बाद अजमेर- मेरवाड़ा में श्री हरीभाऊ उपाध्याय के नेतृत्व में कांग्रेस का मंत्रिमंडल बना। 

● चूंकि कांग्रेस का यह नेतृत्व अजमेर को राजस्थान में मिलाये जाने के कभी पक्ष 

में नहीं रहा और अब अजमेर-मेरवाड़ा में मंत्रिमण्डल के गठन के बाद तो कांग्रेस का नेतृत्व यह तर्क देने लगा कि प्रशासन की 

दृष्टि से छोटे राज्य ही बनाये रखना चाहिए। 

● इस प्रकरण को भी राज्य पुनर्गठन आयोग को सौंप दिया गया। 

राज्य पुनर्गठन आयोग ने अजमेर के कांग्रेस नेताओं के तर्क को स्वीकार नहीं किया एवं सिफारिश की कि अजमेर-मेरवाड़ा का क्षेत्र राजस्थान में मिला देना चाहिए। 

1 नवम्बर 1956 ई. को राज्य पुनर्गठन आयोग द्वारा सिरोही के माउण्ट आबू वाले क्षेत्र के साथ-साथ अजमेर-मेरवाड़ा को भी राजस्थान में मिला दिया गया।


राजस्थान के एकीकरण में कितना समय लगा :-

● इस प्रकार राजस्थान के एकीकरण की प्रक्रिया जो मार्च 1948 में आरम्भ हुई थी उसकी पूर्णाहुति 1 नवम्बर 1956 को हुई। और इस प्रक्रिया में 8 वर्ष 7 माह 14 दिन का समय लगा। 

एकीकृत राजस्थान के निर्माण के बाद भी राजतंत्र के अंतिम अवशेष के रूप में राजप्रमुख के नवसृजित पद रह गए थे। 

● भारत की नवनिर्वाचित संसद ने संविधान के 7वें संशोधन द्वारा 1 नवम्बर 1956 ई. को राजप्रमुख के पद समाप्त कर दिए एवं राज्य के प्रथम राज्यपाल के रूप में सरदार गुरूमुख निहाल सिंह को शपथ दिलाई गई। 

● इस प्रकार सरदार पटेल की चतुराई, बुद्धिमत्ता एवं कुशल नीति से, राजस्थानी शासकों की अनिच्छाओं पर जनमत के प्रभावशाली दवाब से राजस्थान के एकीकरण का स्वप्न साकार हो गया।


महत्वपूर्ण  तथ्य  :- 

राजस्थान का एकीकरण सात चरणों में सम्पन्न हुआ था।

लावा, कुशलगढ व नीमराना चीपशीप (ठिकाने) रियासतें थी।

● स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय राजस्थान में 22 रियासतें थीं ।

● उसमें से 19 स्वतन्त्र व 3 चीपशिप थी।

अजमेर-मेरवाडा ब्रिटिश नियंत्रित राज्य था।

● राजस्थान की रियासतों का एकीकरण लौह पुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शिता, कूटनीति एवं ‘‘रियासत विभाग’’ के अथक् प्रयासों से संभव हो सका।

● भारत सरकार के ‘‘रियासत विभाग’’ के 

निर्णयानुसार स्वतंत्र भारत में वे ही रियासतें अपना पृथक अस्तित्व रख सकेंगी, जिनकी आय ‘‘एक करोड़ रूपये वार्षिक’’ और जनसंख्या दस लाख या उससे अधिक हो।

राजस्थान के एकीकरण का प्रथम चरण अलवर,भरतपुर, धौलपुर एवं करौली को मिलाकर ‘‘मत्स्य संघ’’ के रूप में पूर्ण हुआ।

● सबसे बड़ा संघ 9 राज्यों बाँसवाड़ा,डूँगरपुर, 

प्रतापगढ़, कोटा, बूँदी, झालावाड़,किशनगढ़, 

शाहपुरा व टोंक को मिलाकर ‘‘संयुक्त राजस्थान’’ के नाम से बना।

वृहत राजस्थान की राजधानी ‘‘जयपुर’’ को घोषित किया गया तथा राजस्थान के बड़े नगरों का महत्त्व बनाए रखने के लिए कुछ राज्य स्तर के सरकारी कार्यालय यथा हाईकोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में खनिज विभाग उदयपुर में तथा कृषि विभाग भरतपुर में स्थापित किए गये।

मत्स्य संघ के क्षेत्र भरतपुर व धौलपुर उत्तर प्रदेश (उ.प्र.) में विलय के इच्छुक थे। 

‘‘सिरोही के विलय’’ को लेकर गुजरात एवं राजस्थान के मध्य मतभेद हुए, परन्तु राजस्थान की जनता एवं जननायकों के दबाव के फलस्वरूप सिरोही का विलय राजस्थान में ही किया गया।

● राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों द्वारा 1 नवम्बर 1956 को सिरोही के माउन्ट आबू वाले क्षेत्र के साथ-साथ अजमेर व मेरवाड़ा को भी एकीकृत राजस्थान में मिलाकर आधुनिक राजस्थान का निर्माण किया गया।


NOTES

DOWNLOAD LINK

REET

DOWNLOAD

REET NOTES

DOWNLOAD

LDC

DOWNLOAD

RAJASTHAN GK

DOWNLOAD

INDIA GK

DOWNLOAD

HINDI VYAKARAN

DOWNLOAD

POLITICAL SCIENCE

DOWNLOAD

राजस्थान अध्ययन BOOKS

DOWNLOAD

BANKING

DOWNLOAD

GK TEST PAPER SET

DOWNLOAD

CURRENT GK

DOWNLOAD


ये  नोट्स PDF FORMAT में  DOWNLOAD करने के लिए निचे दिए गये  DOWNLOAD BUTTON पर CLICK करें 
                              धन्यवाद


          DOWNLOAD

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

शिकायत और सुझाव यहां दर्ज करें ।
👇