राजस्थान में 1857 की Kranti,1857 Ki क्रांति, राजस्थान जीके नोट्स
1857 की क्रांति में राजस्थान का योगदान ,1857 की क्रांति और राजस्थान PDF
राजस्थान में 1857 की क्रांति :-
1857 का जन आंदोलन :-
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राजस्थान में 1857 की क्रांति :-
● जब भारत में 1857 का स्वतंत्रता संग्राम फैला उस समय राजस्थान में एजेन्ट टू गवर्नर जनरल पेट्रिक लारेंस थे।
1857 की क्रांति के दौरान राजपूताने के शासक :-
1857' के समय राजपूताना में पॉलिटिकल एजेन्ट :-
● राजस्थान में मुख्यतः छः सैनिक छावनियाँ थीं।
(1) नसीराबाद
(2) नीमच
(3) देवली
(4) कोटा
(5) एरनपुरा
(6) खेरवाड़ा
● नसीराबाद में नैटिव होर्स फील्ड बैटरी नंबर 6, पन्द्रहवीं और तीसवीं बंगाल नेटिव इन्फेन्टरी और फस्र्ट बोम्बे केवेलरी नियुक्त थीं।
● नीमच में बंगाल नेटिव होर्स आर्टेलरी, फस्र्ट बंगाल केवेलरी, बारहवीं बंगाल इन्फेन्टरी और सातवीं इन्फेन्टरी ग्वालियर नियुक्त थी।
● देवली और कोटा में भी इसी प्रकार कुछ ब्रिटिश टुकड़ियाँ तैनात थीं।
● इनके अतिरिक्त एरनपुरा, ब्यावर और खेरवाड़ा में भील टुकड़ियों के साथ-साथ फस्र्ट बंगाल केवेलरी भी नियुक्त थी।
● अजमेर में पन्द्रहवीं बंगाल नेटिव इन्फेन्टरी और मेरवाड़ा बटालियन तैनात थी।
● इसी प्रकार जयपुर, हाड़ौती, जोधपुर और नीमच में भी कुछ टुकड़ियाँ तैनात थीं
● लेकिन इतना स्पष्ट है कि स्वतंत्रता सग्राम के समय समूचे राजस्थान में एक भी यूरोपीय सिपाही तैनात नहीं था।
● यही कारण है कि जब राजस्थान में भी 1857 के स्वतंत्रता सग्राम की आग फैली तो ब्रिटिश सरकार चिंतित हो उठी।
नसीराबाद छावनी का इतिहास
नसीराबाद छावनी की स्थापना 1818 में हुई।
● राजस्थान में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का संकेत नसीराबाद से आरम्भ हुआ।
● 28 मई, 1857 को शाम के 4 बजे नसीराबाद में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
● ब्रिटेन की ओर से नसीराबाद स्थित सेनाओं को निःशस्त्र करने के प्रयास ने आग में घी का काम किया।
● ऐसी अफवाहें भी फैल रही थीं कि सैनिकों को जो आटा दिया जाता है और जो कारतूस काम में लेने के लिए दिए जाते हैं उसमें गाय का माँस मिलाया जाता है।
● 27 मई को यह भी समाचार फैला कि यूरोपीय सैनिकों की एक टुकड़ी नसीराबाद आ रही है जो वहां स्थित सैनिकों का स्थान लेगी।
● इस समाचार ने ब्रिटिश विरोधी भावना को चरम सीमा पर पहुँचा दिया।
● नसीराबाद की स्थिति बिगड़ने लगी।
● सैनिकों ने विद्रोह कर दिया परन्तु फस्र्ट रेजीमेन्ट बोम्बे लान्सर ने विद्रोहियों का साथ नहीं दिया और ब्रिटिश आदेश का पालन करते हुए उन पर गोली चलाई परन्तु लाइट एवं ग्रनेडियर कम्पनी ने गोली चलाने से इनकार कर दिया।
● ब्रिगेडियर मेकल अपने यूरोपियन साथियों के साथ पीछे हटने को बाध्य हुआ; साथ ही कर्नल पैनी जो कि कोर कमान्डर थे-घटनास्थल पर ही मर गए। (सम्भवतः इसका कारण उनका नरवस हो जाना था)
● दो अन्य ब्रिटिश अधिकारियों की भी मृत्यु हो गई, दो घायल हो गए और इसके साथ ही नसीराबाद क्रान्तिकारियों के हाथों में चला गया।
● दूसरे दिन क्रान्तिकारियों ने नसीराबाद छावनी को नष्ट कर दिया और दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
● लेफ्टीनेंट माल्टर तथा लेफ्टीनेंट हेथकोट के नेतृत्व में लगभग एक हजार मेवाड़ के सैनिकों ने क्रान्तिकारियों का पीछा किया परन्तु उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई।
● 12 जून, 1857 को डीसा से यूरोपीय सेनाओं की प्रथम टुकड़ी नसीराबाद पहुंची और 10 जुलाई, 1857 को एजेन्ट गवर्नर जनरल के द्वारा इस टुकड़ी को नीमच भेज दिया गया।
● इस घटना ने नसीराबाद स्थित सैनिकों में पुनः असंतोष को जन्म दिया।
● 12वीं बम्बई नेटिव इन्फेन्टरी के सैनिक अत्यधिक उतेजित हो उठे, परन्तु उन्हें शीघ्र ही निःशस्त्र कर दिया गया।
● 10 अगस्त, 1857 को बम्बई केवेलरी के सैनिकों ने अपने कमांडर के आदेश को मानने से इनकार कर दिया और अपने अन्य साथियों को भी अपना अनुसरण करने को कहा परन्तु ब्रिटिश सरकार ने कठोर कदम उठाए।
● एक सैनिक को तत्काल गोली मार दी गई। पांच और सैनिकों को फांसी पर लटका दिया गया तथा शेष सभी भारतीय सैनिकों को निःशस्त्र कर दिया गया।
● इस प्रकार नसीराबाद में पुनः सुलगती हुई क्रान्ति की आग को तत्काल दबा दिया गया।
नीमच में क्रान्ति
● क्रान्ति का दूसरा केन्द्र नीमच बना, जहां 3 जून, 1857 को क्रान्ति फूट पड़ी।
● 2 जून को कर्नल अबोट ने हिन्दू और मुसलमान सिपाहियों को गंगा और कुरान की शपथ दिलाई थी वे ब्रिटिश शासन के प्रति वफादार रहेंगे,
● कर्नल अबोट ने स्वयं भी बाइबिल को हाथ में लेकर शपथ ली थी।
● परन्तु जब 3 जून, 1857 को नसीराबाद के क्रान्ति का समाचार नीमच पहुँचा तो उसी दिन रात्रि के 11 बजे वहाँ भी क्रान्ति बिगुल बज उठा।
● स्थल सेना ने समूची छावनी को घेर लिया और उसको आग लगा दी।
● यहां तक कि ब्रिगेडियर मेजर के बंगले तक को आग लगा दी गई।
● बंगलों पर तैनात सैनिकों ने क्रान्तिकारिया पर गोली चलाने से इनकार कर दिया और कुछ समय बाद वे भी उनके साथ मिल गए।
● ऐसा कहा जाता है कि 2 स्त्रियाँ तत्काल मृत्यु को प्राप्त हुई और अनेक बच्चों को अग्नि की ज्वाला के भेंट कर दिया गया।
● ब्रिटिश स्त्री पुरुष और बच्चे जो लगभग संख्या में 40 थे, क्रान्तिकारियों के द्वारा घेर लिए गए। यदि उदयपुर (मेवाड़) के सैनिक उचित समय पर सहायता के लिए न पहुँचे होते तो संभवतः उनका जीवन भी समाप्त हो जाता।
● 5 जून को क्रान्तिकारियों ने आगरा होते हुए दिल्ली के लिए प्रस्थान किया।
● उन्होंने आगरा जेल में बन्द सभी कैदियों को मुक्त कर दिया और सरकारी खजाने में से एक लाख छब्बीस हजार नौ सौ रूपए लूटकर साथ ले चले।
● नीमच के क्रान्तिकारी देवली भी पहुंचे और उन्होंने छावनी को आग लगा दी।
● ऐसा विश्वास किया जाता है कि देवली छावनी में कोई भी ब्रिटिश सैनिक हताहत नहीं हुआ, क्योंकि छावनी को पहले ही खाली किया जा चुका था और वहां से ब्रिटिश अधिकारियों को मेवाड़ स्थित जहाजपुर कस्बे में बसा दिया गया था।
● क्रान्तिकारियों ने कोटा रेजीमेन्ट के 60 व्यक्तियों को देवली छावनी से अपने साथ चलने के लिए बाध्य किया परन्तु रास्ते में ये सैनिक भाग निकलने में सफल हो गए और कुछ दिनों पश्चात् वापस देवली पहुँच गए।
● आस-पास के अन्य स्थानों की स्थिति भी विस्फोटक होती जा रही थी।
● मालवा, महू, सलूम्बर इत्यादि स्थानों पर भी क्रान्तिकारियों के आक्रमण बढ़ते जा रहे थे।
● उदयपुर स्थित खेरवाड़ा और सलूम्बर की स्थिति अधिक नाजुक बन चुकी थी
● कैप्टन शावर्स के विचार में इन क्षेत्रों की रक्षा करना बहुत मुश्किल हो गया था।
● 12 अगस्त, 1857 को नीमच में द्वितीय केवेलरी के कमांडर कर्नल जेक्सन ने इस सूचना के आधार पर कि भारतीय सेना में विद्रोह होने वाला है और उनकी योजना समस्त यूरोपीय अधिकारियों की हत्या कर देने की है, यूरोपीय सैनिकों को बुला भेजा।
● इस घटना ने नीमच स्थित भारतीय सैनिकों को उतेजित कर दिया और परिणामतः वहां पुनः क्रान्ति की ज्वालाएं धधकने लगीं।
● उतेजना में एक यूरोपीय सिपाही की हत्या कर दी गई।
● दो अन्य सिपाही घायल हुए और लेफ्टीनेन्ट व्लियेयर किसी यूरोपीय की बन्दूक से ही घायल हो गए।
● सैनिकों ने कर्नल जेक्सन के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया।
● यहां तक कि यूरोपीय अधिकारियों के मध्य भी आदेश दिए जाने सम्बन्धी वाद-विवाद उठ खड़े हुए, अतः यह निश्चय किया गया कि नीमच के क्रान्तिकारियों को दबाने के लिए और अधिक सैनिक बुलाए जाए।
● परन्तु इसी बीच उदयपुर की सहायता से क्रान्ति को दबा दिया गया।
आऊवा ठिकाना व ठाकुर खुशाल सिंह का नेतृत्व :-
● अगस्त, 1857 में क्रान्ति की ज्वालाएँ समस्त राज्य में फैलने लगीं।
● 21 अगस्त को एरनपुरा स्थित जोधपुर सेनाओं ने विद्रोह कर दिया और उन्होंने अपने अधिकारियों के आदेश का पालन करने से इनकार कर दिया।
● परिणामतः लैफ्टीनेंट कारमोली को क्रान्तिकारियों के साथ चलने के लिए बाध्य होना पड़ा, यद्यपि तीन दिन पश्चात् क्रान्तिकारियों ने उन्हें रिहा कर दिया।
● भील सैनिकों ने भी क्रान्तिकारियों का साथ दिया और ब्रिटिश शासन के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया।
● क्रान्तिकारियों ने अनेक ब्रिटिश नागरिक एवं परिवारों को अपनी हिरासत में ले लिया, यद्यपि कुछ समय पश्चात् उन्हें भी रिहा कर दिया।
● तत्पश्चात् आऊवा के ठाकुर खुशाल सिंह ने भी क्रान्तिकारियों को सहयोग देना प्रारम्भ किया, इसका मुख्य कारण यह था कि पिछले कुछ वर्षों से ठाकुर खुशालसिंह और जोधपुर महाराजा के आपसी संबंध तनावपूर्ण थे और वर्तमान परिस्थितियों में ठाकुर खुशालसिंह ने अवसर से लाभ उठाना चाहा।
● 8 सितम्बर, 1857 को महाराजा जोधपुर की सेनाओं और क्रान्तिकारियों एवं आऊवा के ठाकुर की सशस्त्र सेनाओं के मध्य पाली के समीप बिठोड़ा व चेलावास में संघर्ष हुआ, महाराजा जोधपुर की सेनाओं को न केवल पराजय का ही मुँह देखना पड़ा अपितु उनके अधिकांश अस्त्र-शस्त्र क्रान्तिकारियों के हाथ लगे।
● लैफ्टीनेंट हैटकोच जिसे कि राजस्थान में ब्रिटिश एजेन्ट गर्वनर जनरल लारेन्स ने भेजा था, बड़ी मुश्किल से अपना बचाव कर सका।
● इन गंभीर परिस्थितियों को देखते हुए स्वयं जनरल लारेन्स ने आऊवा की ओर कूच करने का निश्चय किया।
● उसने ब्यावर के समीप सशस्त्र बटालियन तैयार की और आऊवा की ओर चल पड़ा।
● 18 सितम्बर को जनरल लारेन्स के नेतृत्व में ब्रिटिश सशस्त्र सेनाओं ने आऊवा पर असफल आक्रमण किया।
● क्रांतिकारी सैनिकों ने न केवल आक्रमण को विफल किया अपितु अनेक ब्रिटिश अधिकारियों को, जिनमें जोधपुर स्थित ब्रिटिश पोलिटिकल एजेन्ट मौक मेसन एवं एक यूरोपीय अधिकारी भी शामिल था, मार डाला, साथ ही साथ जोधपुर सेना के अनेक सैनिक भी क्रान्तिकारियों के हाथों मारे गए और बंदी बना लिए गए।
● क्रान्तिकारियों ने मौक मेसन का सर धड़ से अलग करके आऊवा के किले पर लटका दिया जो एक प्रकार से उनकी विजय का प्रतीक था।
● जनरल लारेन्स को पीछे हटना पड़ा और आऊवा से लगभग तीन मील दूर एक गांव में शरण लेनी पड़ी, तदुपरांत वह अजमेर वापस आया।
● जनरल लारेन्स की पराजय को ब्रिटिश सरकार ने बड़ी गंभीरता से लिया, इसका कारण यह था कि इस घटना का समूचे राजस्थान पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता था।
● अतः ब्रिटिश सरकार ने आदेश दिया कि हर कीमत पर आऊवा ठाकुर को कुचल दिया जाना चाहिए।
● उधर दूसरी ओर, क्रान्तिकारियों ने रिसालदार , अब्दुल अली, अब्बास अली खाॅं, शेख मोहम्मद बख्श और हिन्दू और मुसलमान सिपाहों के नाम पर मारवाड़ और मेवाड़ की जनता से अपील की कि वह उनकी हर संभव सहायता करे।
● ठाकुर खुशालसिंह ने भी मेवाड़ के प्रमुख जागीरदार ठाकुर समंदसिंह से ब्रिटेन के विरूद्ध सहायता देने का प्रस्ताव किया, ठाकुर समंदसिंह ने और मारवाड़ के अनेक प्रमुख जागीरदारों ने चार हजार सैनिकों की सहायता का आश्वासन दिया।
● 9 अक्टूबर, 1857 को आसोप के ठाकुर श्योनाथसिंह, पुलनियावास के ठाकुर अजीतसिंह, बोगावा के ठाकुर जोधसिंह, बांता के ठाकुर पेमसिंह, बसवाना के ठाकुर चांदसिंह, तुलगिरी के ठाकुर जगतसिंह ने दिल्ली सम्राट से सहायता लेने के लिए दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
● ठाकुर समंदसिंह ने भी उपर्युक्त जागीरदारों का साथ दिया।
● जनवरी, 1858 को ब्रिटिश सैनिकों की सहायता करने के लिए बंबई की सैनिक टुकड़ी नसीराबाद पहुंची।
● मार्ग में सिरोही के ठाकुर के अधीन सेवा के किले को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया और 19 जनवरी, 1858 को यह टुकड़ी आऊवा पहुंची।
● इस सेना की सहायता करने के लिए जोधपुर के कार्यकारी ब्रिटिश पोलिटिकल एजेन्ट मेजर मोरीसन भी आऊवा पहुंचे।
● उधर दूसरी ओर, कर्नल होम्स के नेतृत्व में बम्बई नेविट इन्फेन्ट्री भी आऊवा पहुंची।
● तत्पश्चात् 19 जनवरी को ही कर्नल होम्स के नेतृत्व में आऊवा किले पर घेरा डाल दिया गया परन्तु 23 जनवरी, 1858 को अंधकार और वर्षा व तूफान का फायदा उठाते हुए आऊवा क्रान्तिकारी बच निकले।
● ब्रिटिश सेनाओं के द्वारा क्रान्तिकारियों का पीछा किया गया जिन्होंने 18 क्रान्तिकारियों को मौत के घाट उतार दिया और 7 को हिरासत में ले लिया, दूसरी ओर, आऊवा गाँव में 124 व्यक्तियों को बंदी बनाया गया, जिन्हें तत्काल गोलियों का निशाना बना दिया गया।
● साथ ही साथ आऊवा ठाकुर के निवास स्थान को भी मिट्टी में मिला दिया गया और इस प्रकार 24 जनवरी, 1858 को आऊवा पर ब्रिटिश सैनिकों का कब्जा हो गया।
● ऐसा विश्वास किया जाता है कि सैनिक कार्यवाही के दौरान अनेक निहत्थे नागरिकों की भी हत्या की गई जिनके शव गलियों में पड़े दिखाई देते थे।
● ब्रिटिश सेना को भी काफी क्षति पहुँंची ।
● ब्रिटिश सैनिकों ने आऊवा में भयंकर अत्याचार किए।
● भौरता, भीमालिया और लम्बीया गांवों को तहस-नहस कर डाला गया और इस प्रकार जनता में आतंक फैलाकर ब्रिटिश सैनिक नसीराबाद की ओर बढ़े।
कोटा में क्रान्ति :-
● 15 सितम्बर, 1857 को मेजर बर्टन को ब्रिटिश पोलिटिकल एजेन्ट के रूप में कोटा जाने का आदेश मिला।
● तदनुसार कोटा महाराव के वकील मेजर बर्टन को लेने के लिए नीमच पहुंचे।
● 5 अक्टूबर को मेजर बर्टन अपने दो पुत्रों के साथ कोटा के लिए रवाना हुए।
● मेजर बर्टन की पत्नी, उनकी पुत्री और उनके तीन पुत्र नीमच में ही रुक गए थे।
● 12 अक्टूबर को मेजर बर्टन अपने दोनों पुत्रों के साथ कोटा पहुंचे।
● उसी दिन दिल्ली का पतन हुआ और ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस अवसर पर महाराव कोटा को तोपों की सलामी दी गई।
● दूसरे दिन कोटा महाराव ब्रिटिश पोलिटिकल एजेन्ट से मिलने उनके निवास स्थान पर गए और उसी दिन शाम को पोलिटिकल एजेन्ट अपने दोनों पुत्रों के साथ महाराव से मिलने आए।
● ऐसा विश्वास किया जाता है कि अपनी बातचीत के दौरान पोलिटिकल एजेन्ट ने महाराव से अनुरोध किया कि वह अपने कुछ प्रमुख सहयोगियों को पदमुक्त कर दें।
● परन्तु 15 अक्टूबर को कोटा महाराव की दो पलटनों ने ब्रिटेन के विरूद्ध विद्रोह कर दिया और मेजर बर्टन, उनके दोनों पुत्र, एक असिस्टेन्ट सर्जन और एक स्थानीय क्रिश्चियन डाक्टर की हत्या कर दी।
● यही नहीं, मेजर बर्टन का सिर काट लिया गया और क्रान्तिकारी उसे अपने साथ लेते गए।
● कान्तिकारियों का जनता ने भी सहयोग किया और इसे जन आन्दोलन का रूप दे दिया।
● कोटा की क्रान्ति में जयदयाल माथुर व मेहराब खाॅं की मुख्य भूमिका रही।
● ब्रिटिश सेनाओं को पीछे हटना पड़ा।
● पाँच महीने तक लगातार कोटा पर क्रान्तिकारियों का आधिपत्य रहा।
● ऐसा माना किया जाता है कि मेजर बर्टन की हत्या में कोटा महाराव का भी हाथ था और संभवतः इसीलिए मेजर बर्टन को नीमच से वापिस बुलवाया गया था।
● परन्तु इसके विपरीत ब्रिटिश एजेन्ट मेजर बर्टन की हत्या की जांच पड़ताल करने के लिए एक आयोग की नियुक्ति भी की गई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट में कोटा महाराव को मेजर बर्टन की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया था।
● संभवतः यही कारण है कि एजेन्ट गवर्नर जनरल ने महाराव पर 15 लाख रूपये के जुर्माना करने की सिफारिश की थी, परन्तु इन सबके बावजूद महाराव को ब्रिटिश सरकार ने दोषमुक्त ठहराया।
● उधर महाराव कोटा ने अपने आपको इस घटना से बिल्कुल अलग बताया, उन्होंने मेजर बर्टन की नृशंस हत्या पर दुःख प्रकट करते हुए ब्रिटेन से क्षमा-याचना की।
● साथ ही साथ उन्हें ब्रिटेन से यह भी अनुरोध किया कि कोटा से क्रान्तिकारियों को हटाने में ब्रिटिश सैनिक सहायता तुरंत भेजी जाय।
● वास्तविकता यह थी कि कोटा पर पूर्णतः क्रान्तिकारियों का नियंत्रण था और कोटा महाराव एक प्रकार से अपने ही किले में बंदी थी।
● अंततः मार्च, 1858 में मेजर जनरल रोबर्ट्स के नेतृत्व में 5500 सैनिकों की एक टुकड़ी क्रान्तिकारियों का सफाया करने के लिए भेजी गई।
● 29 मार्च को नगर पर आक्रमण आरम्भ हुआ परन्तु क्रान्तिकारी बच निकले और उनका केवल एक सैनिक हरदयाल मारा गया।
● ब्रिटिश सैनिकों ने गोलाबारी की सहायता से नगर में प्रवेश किया,लोगों पर अत्याचार किए और समूचे नगर को धूल-धूसरित कर दिया।
मेवाड़ ठिकाने का सहयोग -
● अंग्रेजी सरकार ने मेवाड़ के सामन्तों के प्रभाव और परम्परागत अधिकारों को कम कर दिया था।
● नसीराबाद के सैन्य विद्रोह की सूचना उदयपुर पहुँची तो वहां भी जनता ने अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध भावना प्रदर्शित की।
● अंग्रेज कप्तान शार्वस को कठोर शब्द कहे।
● सलूम्बर ठाकुर कुशालसिंह और कोठारिया के रावत जोधसिंह ने मारवाड़ के अंग्रेज विरोधी आऊवा ठाकुर और सैनिकों की भी सहायता की।
● ताँत्या टोपे की भी रसद देकर सहायता की। परन्तु मेवाड़ के सामन्त अंग्रेजी सेना के बढ़ते दबाव, धमकियों और कठोर दमन नीति के कारण प्रत्यक्ष विद्रोह नहीं कर पाए।
अन्य राज्यों का योगदान-
● जयपुर, टोंक, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, डूंगरपुर आदि राज्यों में भी अंग्रेज विरोधी भावना विद्यमान रही।
● भरतपुर की सेना, गुर्जर तथा मेव जनता ने भी खुल कर विद्रोह में भाग लिया।
● जयपुर की जनता ने रास्ते से गुजरती अंग्रेजी सेना को अपमानित कर अंग्रेज विरोधी भावना व्यक्त की।
● टोंक के नवाब की सेना ने भी विद्रोह किया। बकाया वेतन वसूला तथा दिल्ली गए।
तांत्या टोपे और राजस्थान, तात्या टोपे इन राजस्थान :-
● 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में तांत्या टोपे का राजस्थान आगमन महत्वपूर्ण घटना है।
● तांत्या टोपे की इस यात्रा ने जागीरदारों सैनिकों तथा जन-साधारण में उतेजना का संचार किया।
● ग्वालियर में असफल होने पर तांत्या टोपे सहायता की आशा में हाड़ौती होते हुए जयपुर की ओर बढ़ा।
● सहायता न मिलने पर वह लालसोट होते हुए टोंक आ गया।
● ब्रिगेडियर होम्स उसका पीछा कर रहा था।
● टोंक में सेना ने उसका समर्थन किया।
● टोंक से वह सलूंबर चला गया।
● सलूंबर के रावत ने उसकी सहायता की।
● अंग्रेजों को तांत्या टोपे ने 9 अगस्त 1858 को हराया ।
● पाँच दिन बाद बनास नदी के तट पर पुनः तांत्या टोपे की पराजय हुई।
● इसके बाद तांत्या हाड़ौती में आ गया तथा झालरापाटन पर अधिकार कर लिया।
● स्थानीय जनता ने उसे पूर्ण सहयोग दिया।
● लेकिन इसके बाद सितंबर माह में ही अंग्रेजों ने उसे दो बार हराया।
● विवश तांत्या टोपे राजस्थान से चला गया।
● दिसम्बर 1858 ई. में तांत्या टोपे पुनः राजस्थान आया तथा बांसवाड़ा पर अधिकार कर लिया।
● बांसवाडा से वह सलूंबर आया। यहां उसे पूरी सहायता दी गई।
● तांत्या टोपे दौसा तथा सीकर भी गया। यहां अंग्रेजी सेनाओं ने उसे पराजित कर खदेड़ दिया।
● नरवर के जागीरदार मानसिंह ने विश्वासघात करके तांत्यां टोपे को अंग्रेजों के हाथों पकड़वा दिया।
● अप्रैल 1859 ई. में तांत्या टोपे को फाँसी दे दी गई।
राजस्थान में 1857 की क्रांति के असफलता के कारण
स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के कारण :-
● 21 सितम्बर 1857 ई. को मुगल बादशाह बहादुर शाह उनकी बेगम जीनत महल तथा उनके पुत्रों को बंदी बनाकर रंगून भेज दिया गया।
● 1858 ई. के मध्य में क्रांति की गति काफी धीमी हो चुकी थी।
● तांत्या टोपे की गिरफ्तारी के साथ ही भारतीयों का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम राजस्थान में समाप्त हो गया।
● राजस्थान में इस समय तीव्र ब्रिटिश विरोधी भावना दिखाई दी।
● जनता ने अंग्रेजों के विरूद्ध घृणा का खुला प्रदर्शन किया। महाराणा से मिलने जाते समय उदयपुर की जनता ने कप्तान शावर्स को खुलेआम गालियाॅं दी।
● जोधपुर की सेना ने कप्तान सदर लैण्ड के स्मारक पर पत्थर बरसाए।
● कोटा, भरतपुर, अलवर तथा टोंक की जनता ने शासकों की नीति के विरूद्ध क्रांतिकारियों का साथ दिया।
● फिर भी राजस्थान में क्रांति असफल हुई , इसके अधोलिखित कारण थे।
नेतृत्व का अभाव-
● राजस्थान 19 रियासतों में विभाजित था।
● अनेक स्थानों पर क्रांति होने पर भी विद्रोहियों का कोई सर्वमान्य नेतृत्व नहीं था।
● राजपूत शासकों ने मेवाड़ के महाराणा से संपर्क किया, किन्तु महाराणा ने इस संबंध में समस्त पत्र व्यवहार अंग्रेजों को सौंप दिया।
● मारवाड़ के सामंतों तथा सैनिकों ने मुगल बादशाह के नेतृत्व में संघर्ष का प्रयास किया।
● किन्तु मुगल बादशाह दिल्ली से बाहर राजस्थान में नेतृत्व प्रदान नहीं कर सका।
● फलतः क्रांतिकारी एकजुट होकर संघर्ष नहीं कर सके तथा उन्हें असफल होना पड़ा।
समन्वय का अभाव :-
● राजस्थान में क्रांति का प्रस्फुटन अनेक स्थानों पर हुआ। लेकिन क्रांतिकारियों के बीच समन्वय का अभाव था।
● नसीराबाद, नीमच, आऊवा तथा कोटा के क्रांतिकारियों में सम्पर्क तथा तालमेल नहीं था। यही कारण है कि भारतीयों को सफलता प्राप्त नहीं हुई।
रणनीति का अभाव :-
● क्रांतिकारियों के प्रयास योजनाबद्ध नहीं थे।
● विद्रोह के पश्चात् उनमें बिखराव आता चला गया।
● दूसरी ओर अंग्रेजों ने योजनाबद्ध ढंग से क्रांतिकारियों की शक्ति को नष्ट किया।
● अंग्रेजी सेनाओं का नेतृत्व कुशल सैन्य अधिकारी कर रहे थे।
● उनकी रसद तथा हथियारों की आपूर्ति संपूर्ण भारत से हो रही थी।
● जबकि क्रांतिकारी सैनिकों के पास साधनों का अभाव था।
● उदाहरणार्थ कोटा तथा धौलपुर के शासकों की क्रांति को दबाने के लिये अंग्रेजों के अतिरिक्त करौली तथा पटियाला से सहायता दी गई थी।
शासकों का असहयोग :-
● राजस्थान के शासकों का सहयोग नहीं मिलना भी असफलता का प्रमुख कारण था।
● यही नहीं, राजस्थान के अधिकांश शासकों ने न केवल राजस्थान बल्कि राजस्थान के बाहर भी अंग्रेजों को पूर्ण सहायता प्रदान की।
● शासकों की इस अदूरदर्षी नीति ने उखड़ी हुई ब्रिटिश सत्ता की पुर्नस्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
राजस्थान में 1857 की क्रांति के परिणाम :-
● 1857 ई. की क्रांति के परिणाम दूरगामी थे।
● इस क्रांति ने अंग्रेजों की इस धारणा को निराधार सिद्ध कर दिया कि मुगलों एवं मराठों की लूट से त्रस्त राजस्थान की जनता ब्रिटिश शासन की समर्थक है।
देशी राज्यों के प्रति नीति परिवर्तन :-
● राजस्थान के शासकों ने क्रान्ति के प्रवाह को रोकने हेतु बाँध का कार्य किया था।
● अंग्रेज शासकों ने यह समझ लिया कि भारत पर शासन की दृष्टि से देशी राजा उनके लिये उपयोगी है।
● अतः अब ब्रिटिश नीति में परिवर्तन किया गया।
● शासकों को संतुष्ट करने हेतु ‘‘गोध निषेध’’ का सिद्धान्त समाप्त कर दिया गया।
● राजाओं की अंग्रेजी शिक्षा दीक्षा का प्रबन्ध किया जाने लगा।
● उनकी सेवाओं के लिए उन्हें पुरस्कार तथा उपाधियाँ दी गई, ताकि उनमें ब्रिटिश ताज तथा पश्चिमी सभ्यता के प्रति आस्था में वृद्धि हो सके।
सामंतों की शक्ति नष्ट करना :-
● विद्रोह काल में सामंत वर्ग ने अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष किया।
● फलतः विद्रोह समाप्ति के बाद अंग्रेजों ने सामंत वर्ग की शक्ति समाप्त करने की नीति अपनाई।
● सामंतों द्वारा दी जाने वाली सैनिक सेवा के बदले नगद राशि ली जाने लगी।
● फलतः सामंतों को अपनी सेनाएँ भंग करनी पड़ी।
● सामंतों से न्यायालय शुल्क लिया जाने लगा। उनके न्यायिक अधिकार छीन लिये गये, उनका राहदारी शुल्क वसूली का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया।
● ऐसे कानून बनाए गये जिनसे व्यापारी वर्ग अपना ऋण न्यायालय द्वारा वसूल कर सके।
● इस नीति के फलस्वरूप व्यापारी वर्ग तथा जनता पर सामंतों का प्रभाव समाप्त होने लगा।
नौकरशाही में परिवर्तन-
● सभी राज्यों के प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर सामंतों का अधिकार था।
● क्रांति के बाद सभी शासकों ने सामंतों को शक्तिहीन करने तथा प्रशासन पर अपना नियंत्रण बढ़ाने के लिए नौकरशाही में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त, अनुभवी एवं स्वामी भक्त व्यक्तियों को नियुक्ति प्रदान की।
● इसके फलस्वरूप राजभक्त, अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मध्यम वर्ग का विकास हुआ।
यातायात के साधन :-
● संघर्ष के समय में अंग्रेजों की सेनाएँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में कठिनाई का सामना करना पड़ा।
● विद्रोह के पश्चात् सैनिक तथा व्यापारिक हितों को ध्यान में रखते हुए यातायात के साधनों का विकास किया गया।
● नसीराबाद, नीमच, तथा देवली को अजमेर तथा आगरा से सड़कों द्वारा जोड़ दिया गया।
● रेल कम्पनियों को रेल मार्ग निर्माण हेतु प्रोत्साहित किय गया।
● अंग्रेज सरकार ने देशी राज्यों पर भी सड़कों तथा रेलों के निर्माण हेतु दबाव डाला, इसके फलस्वरूप यातायात के साधनों का त्वरित विकास हुआ।
सामाजिक परिवर्तन-
● अंग्रेजी सरकार ने अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का विस्तार किया।
● दूसरी ओर अंग्रेजी शिक्षा का महत्व बढ़ जाने के फलस्वरूप मध्यम वर्ग का विकास हुआ।
● इस वर्ग ने अंग्रेजी शिक्षा लेकर प्रशासन तथा अन्य क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान किया।
● अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक स्वार्थों के कारण वैश्य वर्ग को संरक्षण प्रदान किया।
● कालान्तर में ब्राह्मण तथा राजपूत वर्ग का प्रभाव कम होता चला गया।
● मेयो काॅलेज के माध्यम से राज परिवारों को पाष्चात्य विचारों व विलासिता में ढाला गया।
● अग्रेंज प्रत्येक ठिकानेदार से निश्चित कर व सैन्य खर्च लेते थे,पूर्व में अकाल आदि की स्थिति में अब कर माफ करना सम्भव नहीं था, अतः जनता से कर वसूली का दबाव बनाया।
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