क्या हैं ? भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित मुख्य शब्द। पढें पूरी जानकारी इस ऑर्टिकल में

 क्या हैं प्रस्तावना मैं वर्णित मुख्य शब्द? जानिये।


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प्रस्तावना मैं वर्णित मुख्य शब्दों की व्याख्या :-


प्रस्तावना भ्रातृभाव के उद्देश्य पर बल देती है ताकि व्यक्ति की गरिमा और देश की एकता दोनों सुनिश्चित रहें। 

संविधान की प्रस्तावना

● भ्रातृभाव भावना हमारे जैसे देश के लिए अति आवश्यक है क्योंकि यह विभिन्न जातियों और धर्मो का देश है। 

● व्यक्ति की गरिमा के सन्दर्भ में के.एम. मुन्शी कहते हैं कि यह लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने का एक साधन ही नहीं है अपितु यह प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व को भी गरिमामय मानता है।

● इसी प्रकार एकता और अखण्डता जैसे शब्दों को क्षेत्रावाद, प्रान्तवाद, भाषावाद, सम्प्रदायवाद, अलगाववाद और अलग होने की गतिविध्यिं की प्रवृति पर रोक लगाने के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया या है। ताकि पंथ निरपेक्षता के आधर पर राष्ट्रीय एकता के सपने को साकार किया जा सके।

● सरल शब्दों में किसी देश का संविधन देश का शासन चलाने वाले कानूनी नियमों का संग्रह होता है। 

● यह प्रमुख विश्वासों और हितों अथवा टकरावपूर्ण विश्वासों और हितों के बीच कुछ समझौतों को दर्शाता है जो संविधन बनाने और अपनाने के समय के समाज की विशेषताएं हैं। 

● यह सत्य है कि कोई संविधान त्रुटिरहित नहीं और भारतीय संविधान भी इस सामान्य सत्य का अपवाद नहीं है। 


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● यह भारत के लिए सम्मान की बात है कि एक सांविधनिक सरकार के लिए संघर्ष इतना गहरा था कि इसने अपनी राजनीतिक स्वतंत्राता प्राप्त करने के 3 वर्ष के भीतर ही अपने लिए एक संविधान निर्मित कर लिया। 

● स्वीकार किए गए संविधान का लक्ष्य न केवल सरकारी मशीनरी स्थापित करने का माध्यम बनना

था अपितु इसको सामाजिक व्यवस्था के क्रमबद्ध परिवर्तन का प्रभावशाली औजार भी बनना था।

● किसी संविधान की ताकत और स्थायित्व अधिकांशतः एक स्वस्थ और शान्तिपूर्ण

सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की योग्यता और अवसर की मांग के अनुसार अपने आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था में शान्तिपूर्ण परिवर्तन को लाने में सहायक होने पर निर्भर करता है। 

● इस दृष्टिकोण के अन्तर्गत संविधान में एक भी ऐसा आदर्श नहीं है जिसको इसके सबसे बड़े आलोचक भी प्रतिक्रियावादी कह सकें। 

● इसका आधरभूत उद्देश्य अपने सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्राता, समानता और भाईचारा प्राप्त करने के लिए एक लोकतान्त्रिक, समाजवादी, पंथ निरपेक्ष गणतन्त्रा स्थापित करना है।


संप्रभुता :-

● सम्प्रुभता शब्द का अर्थ है - भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रुभता सम्पन्न राष्ट्र है। 

भारत की प्रस्तावना को संविधान द्वारा तय की गयी कुछ सीमाओं के विषय में देश में कानून बनाने का अधिकार है।

● संप्रभुता किसी स्वतंत्रा राज्य का सबसे पहला तत्व है।  इसका अर्थ निरपेक्ष स्वतंत्राता है अर्थात् - ऐसी सरकार जिस पर किसी बाहरी अथवा आन्तरिक शक्ति का नियन्त्राण नहीं होता है। 

● कोई भी देश संप्रभु हुए बिना अपना संविधान नहीं रख सकता। इसलिए भारत एक संप्रभु देश है।

● यह बाहरी नियन्त्राण से मुक्त है। यह अपनी नीतियां स्वयं बना सकता है, और अपनी विदेश नीति बनाने में स्वतंत्रा है।


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समाजवादी :- 

'समाजवादी' शब्द संविधान के 42 वें संशोधन अधिनियम (1976 में) द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया।

● समाजवाद का अर्थ -   समाजवादी की प्राप्ति लोकतांत्रिक तरीकों से होती है। 

● भारत ने 'लोकतांत्रिक समाजवाद' को अपनाया है।

● लोकतांत्रिक समाजवाद एक मिश्रित अर्थव्यवस्था में विश्वास रखती है जहां निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र आते हैं। 

● इसका असमानता को समाप्त करना है।

● ‘समाजवादी’ शब्द मूल रूप से संविधन में नहीं था। इस शब्द को 1976 में संविधन के 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया है। 

समाजवादी शब्द का अर्थ विवादित है क्योंकि यह अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग अर्थ रखता है। 

● हमारे संविधान में इसका प्रयोग आर्थिक नियोजन के सन्दर्भ में किया गया है। 

● ‘समाजवाद’ शब्द का प्रयोग अर्थ व्यवस्था में राज्य की मुख्य भूमिका को स्वीकृति प्रदान करता है। 

● इसका अर्थ असमनताओं को दूर करना, सबकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना, समान कार्य के लिए समान वेतन, पैसों तथा उत्पादन के साधनों को कुछ हाथों में संकेन्द्रित होने से रोकना जैसे आदर्शों को प्राप्त करना भी है। 

● राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक लोकतन्त्रा के आदर्शों को समानता और भाईचारे के साथ मिलाकर। 

‘प्रस्तावना’ महात्मा गांधी द्वारा वर्णित ‘मेरे

सपनों का भारत’ स्थापित करने का उद्देश्य रखती है, जिसमें सबसे गरीब आदमी यह अनुभव कर सके कि यह उनका अपना देश है जहाँ उसकी प्रभावशाली आवाज होगी।

● एक ऐसा भारत जहां सभी समुदाय पूर्ण समरसता के साथ आपस में मिल कर रहते हैं, जहां महिलाओं को भी पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त हैं।


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धर्मनिरपेक्ष :- 

'धर्मनिरपेक्ष' शब्द संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम (1976 में) द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। 

भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ है - भारत में सभी धर्मों को राज्यों से समानता, सुरक्षा और समर्थन पाने का अधिकार है। 

संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 25 से 28  में मौलिक अधिकार के रूप में धर्म की स्वतंत्रता का उल्लेख है।

भारत में अलग अलग धर्म और आस्था रखने वाले लोगों के बीच एकता और भाईचारे की भावना बढ़ाने के लिए - पंथ निरपेक्षता के आदर्श को डाला गया, जिसका अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों की समान रूप से रक्षा करता है और किसी भी धर्म को राज्य का धर्म नहीं मानता। 

● दूसरे शब्दों में भारत न तो धर्मिक देश है, न अधर्मिक और न ही धर्म विरोधी है। 

● इसका स्पष्ट अर्थ है कि देश का अपना कोई धर्म नहीं होगा और राज्य किसी विशेष धर्म की सरकारी कोष से सहायता नहीं करेगा।

● इससे स्पष्ट होता है कि भारत का अपना कोई धर्म नहीं होगा। सभी व्यक्तियों को विवेक की स्वतंत्राता, अपनी पसन्द के किसी भी धर्म को अपनाने तथा प्रचार करने का समान अधिकार होगा। 


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इसके दो अभिप्राय हैं :-

1. प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म में विश्वास

करने तथा पूजा पद्धति अपनाने की स्वतंत्राता होगी।

2. राज्य किसी व्यक्ति अथवा समूह के साथ धर्म के आधर पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।


लोकतांत्रिक :-

● लोकतांत्रिक शब्द का अर्थ है -  संविधान की स्थापना एक सरकार के रूप में होती है जिसे चुनाव के माध्यम से लोगों द्वारा निर्वाचित होकर अधिकार प्राप्त होते हैं। 

● प्रस्तावना इस बात की पुष्टि करती हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसका अर्थ है कि सर्वोच्च सत्ता लोगों के हाथ में है। 

● लोकतंत्र शब्द का प्रयोग राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र के लिए प्रस्तावना के रूप में प्रयोग किया जाता है।

● सरकार के जिम्मेदार प्रतिनिधि, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, एक वोट एक मूल्य, स्वतंत्र न्यायपालिका आदि भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएं हैं।

● ‘लोकतान्त्रिक शब्द’ बड़ा व्यापक अर्थ रखता है। संकुचित राजनीतिक दृष्टि से तो यह केवल सरकार के रूप से सम्बन्ध्ति है जो प्रतिनिध्यित्मक और जिम्मेदार व्यवस्था होती है और जिसके अन्तर्गत राज्य के मामलों का प्रशासन सम्भालने वालों को मतदाता चुनते हैं और वे मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होते हैं। 

● लेकिन व्यापक अर्थ में यह राजनीतिक लोकतन्त्रा के अतिरिक्त सामाजिक और आर्थिक लोकतन्त्रा को भी साथ लेकर चलता है।

● प्रस्तावना की अन्तिम पंक्ति कहती है इस संविधन को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मर्पित

करते हैं।

● वास्तव में देश के राजनीतिक सिद्धान्त प्रस्तावना की अन्तिम पंक्ति से फूटते हैं। लोकतन्त्र को आमतौर पर लोगों का शासन, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए जाना जाता है।



भारतीय संविधान का निर्माण - संविधान सभा

गणराज्य :- 

● एक गणराज्य में, राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लोगों द्वारा चुना जाता है।

● भारत के राष्ट्रपति को लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। (संसद औऱ राज्य विधानसभाओं में अपने प्रतिनिधियों के माध्यम)

● एक गणतंत्र में, राजनीतिक संप्रभुता लोगों के हाथों में निहित होती है।

● ‘गणराज्य’ का अभिप्राय है ‘राज्य का निर्वाचित मुखिया’। 

● एक लोकतान्त्रिक देश में निर्वाचित अथवा वंशानुगत मुखिया हो सकता है। 

● वंशानुगत ब्रिटिश राजा/रानी लोकतन्त्रा में किसी

प्रकार की बाध नहीं हैं। वहां वंशानुगत राजा लोकतान्त्रिक शासन में बाध्क नहीं हैं क्योंकि

राज्य का वास्तविक शासन मतदाताओं के प्रतिनिध्यिं के हाथ में ही है। परन्तु गणतन्त्रात्मक

राज्य में राज्य का मुखिया, किसी एक को या समूह को सदैव एक निश्चित अवधि् के लिए निर्वाचित किया जाता है। 

● उदाहरण के लिए अमेरिका में राज्याध्यक्ष और कार्यपालिका के मुखिया को चार वर्ष की अवधि् के लिए चुना जाता है। 

● इसी प्रकार स्विट्जरलैण्ड में सात सदस्यों के कोलेजियम को कार्यपालिका का गठन करने के लिए चार वर्षों हेतु चुना जाता है।

● आगे चल कर प्रस्तावना भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के उद्देश्यों को परिभाषित करती है। 

● ये चार उद्देश्य हैं ‘न्याय, स्वतंत्राता, समानता और भ्रातृभाव। 

● यह ठीक ही कहा गया है कि स्वतंत्राता आन्दोलन केवल ब्रिटिश शासन के विरुद्ध नहीं था

● अपितु यह तो पुरूष और महिलाओं की गरिमा को पुर्नस्थापित करने, गरीबी हटाने और सब प्रकार से शोषण को समाप्त करने की शुरूआत थी। 

● ऐसी दृढ़ प्रेरणा और आदर्शों ने संविधन निर्माताओं को पहले उल्लिखित चार उद्देश्यों के प्रावधनों पर बल देने के लिए प्रोत्साहित किया।

न्याय :- 

● न्याय का अभिप्राय व्यक्ति के व्यक्तिगत आचरण का समान के सामान्य कल्याण के साथ समरस सहमति। 

● न्याय का सार है सबकी भलाई को प्राप्त करना।

● प्रस्तावना में मानव गतिविधि के समस्त सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र सम्मिलित हैं। 

● दूसरे शब्दों में न्याय, लोगों को आधरभूत आवश्यकताओं को प्रदान करने, भोजन, कपड़े और आवास का अधिकार, निर्णय करने में भागीदारी तथा मानव रूप में गरिमा के साथ रहने का अधिकार प्रदान करने का वायदा करती है।

● प्रस्तावना केवल न्याय के विभिन्न आयामों

तक ही नहीं पहुंचती अपितु ‘सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार’ के रूप में राजनीतिक न्याय भी प्रदान करती है। अथवा प्रतिनिधियात्मक लोकतन्त्रा प्रदान करती है।

● प्रस्तावना में न्याय शब्द को तीन रूपों में समाविष्ट किया गया है :- आर्थिक न्याय,  सामाजिक न्याय ,और राजनीतिक न्याय। 


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1. सामाजिक न्याय :- 

● सामाजिक न्याय का अर्थ संविधान द्वारा  एक बराबर सामाजिक स्थिति के आधार पर एक अधिक न्यायसंगत समाज बनाने से है। 

2. आर्थिक न्याय :- 

● आर्थिक न्याय का अर्थ समाज के अलग - अलग व्यक्तियों के बीच संपति के समान वितरण से है जिससे संपति कुछ एक हाथों में ही एकत्रित नहीं हो सके। 

3. राजनीतिक न्याय :- 

● राजनीतिक न्याय का अर्थ सभी नागरिकों को राजनीतिक भागीदारी में बराबरी के अधिकार से है। 

● भारतीय संविधान प्रत्येक वोट के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और समान मूल्य प्रदान करता है।

स्वतंत्रता :- 

● स्वतंत्रता का अभिप्राय व्यक्तिगत स्वतंत्रता से है।

● ‘प्रस्तावना’ में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक भाव से नहीं अपितु सकारात्मक भाव से किया गया है। 

● यह केवल व्यक्ति की स्वतंत्र गतिविधियों पर किसी प्रकार के मनचाहे प्रतिरोध को अनुपस्थिति को ही नहीं दर्शाती अपितु व्यक्ति के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास के लिए आवश्यक अनिवार्य परिस्थितियों को भी निर्मित करती है। 

● ‘प्रस्तावना’ विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता पर बल देती है जिसको संविधना द्वारा मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत प्रदान किया गया है।


समानता :- 

● समानता का अर्थ समाज के किसी भी वर्ग के समान अधिकार से है।  

●संविधान की प्रस्तावना देश के सभी लोगों के लिए स्थिति और अवसरों की समानता प्रदान करती है। 

● संविधान देश में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता प्रदान करने का प्रयास करता है।

● समानता के बिना स्वतंत्रता मिथ्या है। वास्तव में स्वतंत्रता और समानता एक दूसरे के पूरक हैं।

● समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी लोग मानसिक और शारीरिक रूप से एक समान हैं। दूसरी और यह सामाजिक स्तर और अवसरों की समानता को दर्शाती है। स्थिति की समानता धर्म, जाति, वंश, रंग और निवास स्थान के आधर पर किसी प्रकार के भेदभाव पर अंकुश लगा कर प्रदान की जाती है। 

● छूआछात पर प्रतिबन्ध् लगाकर तथा सभी उपाध्यिं का उन्मूलन करके इस पर अतिरिक्त बल दिया गया है। इसके साथ ही कानून का शासन सुनिश्चित करके, सरकारी नौकरियों के मामले में भेदभाव को रोककर तथा कानून के सामने सबको बराबरी देकर अवसरों की समानता सुनिश्चित की जाती है।


भाईचारा :- 

● भाईचारे का अर्थ एकता  की भावना से है।

● संविधान की प्रस्तावना व्यक्ति और राष्ट्र की एकता और अखंडता की गरिमा को बनाये रखने के लिए लोगों के बीच भाईचारे को बढावा देती है।

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