भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं ।। samvidhan ki visheshta pdf

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं ।। samvidhan ki visheshta pdf



संविधान की प्रमुख विशेषताएं


● यदि हम विश्व के विभिन्न संविधानों पर नजर डालें तो हमें इन संविधानों की अलग-अलग विशेषताएं देखने को मिलती हैं। व्यापक रूप से हम इन संविधानों को उस देश द्वारा अपनाई गई राजनीतिक व्यवस्थाओं के आधार पर वर्गीकृत कर सकते हैं। 

निम्न चार आधारों पर आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था को वर्गीकृत किया जाता है। 

1. लोकतान्त्रिक और तानाशाही सरकारें- इनका वर्गीकरण लोगों की सहभागिता और व्यवस्था को प्रदान की गई स्वायतता के आधार पर किया जाता है। 

2. विधायिका और कार्यपालिका - विधायिका और कार्यपालिका के लोकतांत्रिक व्यवस्था में आपसी सम्बन्धों पर आधारित है इस आधार पर हम उनका संसदीय और अध्यक्षात्मक राजनीतिक व्यवस्था के रूप में अन्तर करते हैं। 

3. संघात्मक और एकात्मक के रूप में - शक्तियों के भौगोलिक वितरण के आधार पर संघात्मक और एकात्मक के रूप में वर्गीकृत करते हैं।

4.पूंजीवादी और समाजवादी व्यवस्था के रूप में - आर्थिक ढांचे के आधार पर पूंजीवादी और समाजवादी व्यवस्था के रूप में वर्गीकृत करते हैं।


● उपरोक्त के अतिरिक्त एक अन्य प्रकार का वर्गीकरण लिखित और अलिखित संविधान है। 


भारतीय संविधान की विशेषताएं

● तत्वों और मूल भावना की दृष्टि से भारतीय संविधान अद्वितीय है। यह अलग बात है कि भारतीय संविधान के कई तत्व विश्व के अलग-अलग संविधानो  से उधार लिए गए हैं फिर भी भारत के संविधान के कई ऐसे तत्व भी हैं जो भारतीय संविधान को अन्य देशों के संविधान से अलग पहचान देते हैं।


लिखित संविधान (सबसे लंबा लिखित संविधान)


● संविधान को दो भागों में बांटा जाता है - 1. लिखित संविधान 2. अलिखित संविधान

● इग्लैण्ड के संविधान के विपरीत संयुक्त राज्य अमरीका, कनाडा, फ्रांस और भारत के संविधान लिखित हैं यद्यपि ये एक दूसरे से किसी न किसी आधार पर अलग हैं। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित और विस्तृत संविधान है।


● मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां थी। वर्तमान में 470 अनुच्छेद (मूल अनुच्छेद तो 395 ही हैं लेकिन उपश्रेणियों को जोड़ने के बाद ये 470 अनुच्छेद हो जाते हैं) 25 भाग और 12 अनुसूचियां हैं।


● संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में केवल सात अनुच्छेद हैं आस्ट्रेलिया संविधान में 128 और कनाडा के संविधान में 147 अनुच्छेद है।  


● किसी संघ के लिए अनिवार्य है कि इसका संविधान लिखित होना चाहिए ताकि जब जरूरत हो तब केन्द्र और राज्य सरकारें इसका प्रयोग कर सकें। इसके अनुसार संविधान सभा ने एक लिखित संविधान तैयार किया जिसमें 395 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियां शामिल हैं। अतः यह विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है जिसको पूरा करने में 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन का समय लगा।

कठोर और लचीलेपन का सम्मिश्रण 

● भारतीय संविधान की एक अन्य विशेषता जो इसको दुनियां के अन्य संविधानों से अलग करती है वह है कि इसमें कठोरता और लचीलेपन का मिश्रण है। 

● भारतीय संविधान में संशोधन करने का अधिकार अनुच्छेद 368 के तहत आता है।

● अनुच्छेद 368 में दो तरह के संशोधनों का प्रावधान है कुछ संशोधनों को संसद में विशेष बहुमत से ही संशोधित किया जा सकता है और कुछ अन्य प्रावधानों को संसद के विशेष बहुमत और आधे राज्यों के अनुमोदन से संशोधित किया जा सकता है।

● संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया न तो इग्लैण्ड की तरह बहुत सरल है और नही अमरीका की तरह बहुत कठिन। 

● इंग्लैण्ड में जहां लिखित संविधान नहीं है वहां संवैधानिक कानून और साधारण कानून में कोई अन्तर नहीं है। संवैधानिक कानून को ठीक उसी तरह संशोधित किया जा सकता है जैसे किसी साधारण कानून को पारित अथवा संशोधित किया जा सकता है। 

● संयुक्त राज्य अमरीका में संविधान संशोधन का तरीका बहुत कठोर है। यह केवल कांग्रेस के सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से किया जा सकता है जिसको बाद में कम से कम तीन चौथाई राज्यों की स्वीकृति चाहिए। 

● भारत का संविधान एक अच्छी व्यवस्था को अपनाता है जिसमें ब्रिटिश संविधान का लचीलापन और अमेरीकी संविधान की कठोरता का मिश्रण अपनाया गया है।

● भारत में संविधानों के कुछ ही प्रावधानों में संशोधन के लिये राज्य विधानसभाओं की स्वीकृति चाहिए और वह भी केवल आधे राज्यों की स्वीकृति पर्याप्त हैं शेष संविधान को उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से संशोधित किया जा सकता है परन्तु यह बहुमत सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत होना चाहिए।

● उपरोक्त तरीकों के अतिरिक्त संसद को संविधान के कुछ प्रावधानों को साधारण बहुमत से बदलने अथवा सुधारने की शक्ति दी गई है जैसा कि साधारण विधेयक के मामले में साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है और संविधान में ऐसा दर्ज है कि ऐसे संशोधनों अथवा परिवर्तनों को संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा। 

● यह उल्लेखनीय है कि विगत 62 वर्षों में अनेक संशोधन या तो पारित किए गए हैं अथवा विचाराधीन हैं। यह संकेत है कि भारतीय संविधान लचीला है। हालांकि यह स्मरण रखना चाहिए कि हमारे संविधान के मूल (आधारभूत) ढांचे को नहीं बदला जा सकता या आधारभूत ढाँचे में संशोधन नहीं किया जा सकता।


एकात्मक प्रवृति वाला संघात्मक ढांचा

● भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता इसका संघात्मक ढांचा है जिसका झुकाव एकात्मता की ओर है। दूसरे शब्दों में साधारणतया व्यवस्था संघात्मक है परन्तु संविधान संघात्मकता को एकात्मकता में परिवर्तित होने की क्षमता देता है।

संघवाद एक आधुनिक अवधारणा है। आधुनिक समय में इसके सिद्धान्त और व्यावहारिकता अमेरीका से पुरानी नहीं है जो 1787 में अस्तित्व में आया। किसी भी संघीय ढांचे में सरकार के सुपरिभाषित शक्तियों और कार्यों वाले दो स्तर होते हैं ऐसी व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार और इकाईयों की सरकारें सुपरिभाषित क्षेत्रों में कार्य करती हैं, एक दूसरे से तालमेल / सहयोग करती हैं दूसरे शब्दों में संघीय राजनीति सामान्य राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा विविधता में एकता लाने की एक संवैधानिक विधि प्रदान करती है। 


● आज की भारतीय संघीय व्यवस्था में ऐसी सभी विशेषताएं हैं जो संघीय राजनीति के लिए आवश्यक हैं। भारतीय संविधान की मुख्य संघात्मक विशेषताएं निम्नलिखित हैं -


संघात्मक विशेषताएं

1. लिखित और कठोर संविधान

 

● किसी संघात्मक संविधान की एक अनिवार्य विशेषता है कि संविधान ने केवल लिखित अपितु कठोर भी होना चाहिए। यह कठोरता विशेष रूप से संघ बनाने वाली इकाईयों के लिए आवश्यक है ताकि केन्द्र अपनी सुविधानुसार या मनमाने तरीके से विषय सूची को बदल न सके। दूसरे शब्दों में इसमें आसानी से संशोधन नहीं किया जा सकता। 

● केन्द्र राज्य सम्बन्धों से जुड़े सभी संवैधानिक प्रावधानों को केवल राज्य विधान सभाओं और केन्द्रीय संसद की संयुक्त कार्यवाही से बदला जा सकता है। ऐसे प्रावधानों को केवल तभी संशोधित किया जा सकता है यदि संसद के उपस्थित और मतदान करने वाले दो तिहाई सदस्य संशोधन को पारित करें, जो कि कुल सदस्य संख्या का साधारण बहुमत होना चाहिए और जिसको कम से कम आधे राज्यों की स्वीकृति प्राप्त होनी चाहिए।


2. संविधान की सर्वोच्चता


● किसी भी संघीय ढांचें में संविधान केंद्र तथा संघीय इकाईयों के लिए बराबर रूप से सर्वोच्च होना चाहिए। संविधान देश का सर्वोच्च कानून है तथा केंद्र अथवा राज्यों द्वारा पारित कानून संविधान सम्मत होने चाहिए। इसके अनुसार भारत का संविधान भी सर्वोच्च है और न केंद्र न ही राज्यों के हाथ की कठपुतली है। यदि किसी कारणवश राज्य का कोई अंग संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है तो न्यायालय संविधान की गरिमा को हर हाल में बनाए रखने को सुनिश्चित करते हैं।

3. शक्तियों का विभाजन


● किसी भी संघ में शक्तियों का स्पष्ट विभाजन होना चाहिए ताकि इकाईयां और केंद्र अपने क्षेत्र में रह कर कानून बना और लागू कर सके और कोई भी अपनी सीमा का उल्लंघन कर दूसरे के कार्यक्षेत्र का अतिक्रमण न कर सके। यह अनिवार्यता हमारे संविधान में प्रत्यक्ष है। 

● सातवीं अनुसूची में तीन प्रकार की सूचियां हैं जिन्हें संघीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची कहा जाता है।

● संघीय सूची में 97 विषय हैं जिनमें से रक्षा, विदेशी मामले, डाक एवं तार, मुद्रा इत्यादि महत्वपूर्ण हैं। 

● राज्य सूची में 66 विषय है जिनमें जेल, पुलिस, न्याय प्रशासन, जन स्वास्थ्य, कृषि इत्यादि शामिल हैं। 

● समवर्ती सूची में 47 विषय शामिल हैं जिनमें आपराधिक कानून, विवाह, तलाक, दीवालिया, व्यापार संघ, बिजली अर्थव्यवस्था सामाजिक नियोजन और शिक्षा इत्यादि शामिल हैं। 


● संघीय सरकार को संघीय सूची के विषयों पर कानून बनाने की विधायी शक्ति है। 

● राज्य सरकारों को राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का पूरा अधिकार है। 

● समवर्ती सूची में केंद्र और राज्य दोनों सूची में शामिल विषयों पर कानून बना सकते हैं जैसे शिक्षा, स्टैम्प ड्यूटी, दवाएं और विषैले पदार्थ, अखबार इत्यादि। केंद्र और राज्य के बीच टकराव की स्थिति में केंद्र द्वारा बनाया गया कानून राज्य कानून के ऊपर मान्य होगा। 

● तीनों सूचियों में शामिल न किए गए विषयों अर्थात अवशिष्ट विषय / शक्तियों पर कानून बनाने का अधिकार संघीय सरकार के पास है।

4. न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान

● किसी भी संघ के लिए अनिवार्य है कि उसकी न्यायपालिका स्वतंत्र तथा वहाँ संघीय विवादों के निपटारे के लिये सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या हो। वह संविधान की संरक्षक होनी चाहिए। यदि कोई कानून संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन करता है तो सर्वोच्च न्यायालय ऐसे कानून को असंवैधानिक करार कर के रद्द कर सकता है। न्यायपालिका की निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए मुख्य न्यायाधीश अथवा अन्य न्यायाधीशों को कार्यपालिका द्वारा अपदस्थ नहीं किया जा सकता और न ही संसद द्वारा उनके वेतन कम किए जा सकते हैं।


5. द्विसदनीय विधायिका


संघीय व्यवस्था के लिए द्विसदनीय विधायिका को आवश्यक समझा जाता है। उच्च सदन, राज्यों की परिषद (राज्य सभा) में राज्यों को प्रतिनिधित्व दिया जाता है जबकि लोक सभा में लोगों द्वारा निर्वाचित सदस्य लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्य सभा के सदस्यों को राज्य विधानसभाएं निर्वाचित करती है लेकिन संयुक्त राज्य की सीनेट की तरह यहां सबको एक समान प्रतिनिधत्व नहीं मिलता (संयुक्त राज्य में 50 राज्यों में से प्रत्येक को एक समाज प्रतिनिधित्व (2 सीनेटर दिए जाते हैं।) भारत में 28 राज्यों का प्रतिनिधित्व एक समान नहीं होता।

एकात्मक विशेषताएं


1. सशक्त केंद्र

● शक्तियों के विभाजन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि राज्य सरकारों की शक्ति सीमित और प्रगणनीय है। इसके विपरीत संघीय सरकार को कुछ परिस्थितियों में राज्य सरकारों की तुलना में अधिक शक्तियां प्राप्त है तथा इसका अवशिष्ट विषयों पर भी नियंत्रण है।

2. संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान


● साधारणयतः एक संघात्मक ढांचे के अन्तर्गत राज्यों के अपने अलग संविधान होते हैं। संयुक्त राज्य में ऐसा ही है। इसके विपरीत भारतीय संघ में केवल एक ही संविधान है और राज्यों के लिए कोई अलग संविधान नहीं है।

3. एकीकृत न्याय प्रणाली


● संयुक्त राज्य के राज्यों की अपनी स्वतंत्र न्याय व्यवस्था होती है जिसका संघीय न्यायपालिका से काई सम्बन्ध नहीं है। आस्ट्रेलिया में भी लगभग यही प्रणाली है। लेकिन भारत में सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ एकल एकीकृत न्याय प्रणाली का निर्माण करते हैं जिनके शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है। दीवानी और फौजदारी कानूनों को वर्गीकृत किया गया है और वे पूरे देश में लागू होते हैं।


4. अखिल भारतीय सेवाएं


● भारतीय संविधान में प्रशासनिक व्यवस्था में समरूपता सुनिश्चित करने के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए गए हैं जिससे संघात्मक सिद्धान्तों के साथ समझौता किए बिना न्यूनतम संयुक्त प्रशासनिक मापदण्ड बनाए रखे जा सकें।

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5. राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति


● राज्य के अध्यक्ष राज्यपाल का निर्वाचन अमेरिकी राज्य के गवर्नरों की भांती नहीं होता। भारत में उनको राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। वे राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपने पद पर बने रहते हैं। राष्ट्रपति उसको कुछ अवसरों पर एक से अधिक राज्यों का कार्यभार देखने के लिए कह सकता है। इससे संघीय सरकार राज्य शासन पर नियन्त्रण रख सकती है।


भारतीय संघवाद का आलोचनात्मक विश्लेषण


● भारतीय संविधान के निर्माता देश की एकता और अखण्डता को सुनिश्चित करने के प्रति कटिबद्ध थे। वे देश में काम कर रही विध्वंशक और फूट डालने वाली शक्तियों से परिचित थे। स्वतंत्रता के समय यह महसूस किया गया कि इन प्रवृतियों से एक शक्तिशाली केंद्रीय सरकार ही निपट सकती है। इसलिए संविधान निर्माताओं ने केंद्र को प्रमुख भूमिका प्रदान की। 

● उसके साथ ही उन्होंने एक सहकारी संघवाद की स्थापना के लिए भी प्रावधान किए। यह बात भी सत्य है कि विगत साठ सालों में केंद्र और राज्यों के बीच सम्बन्ध सदा मधुर नहीं रहे हैं।

● यह याद रखा जाना चाहिए कि एकता और विविधता के बीच संघीय व्यवस्था में अच्छी तरह तालमेल होता है। संघ की इकाईयां अपने आन्तरिक प्रशासन में राजनीतिक और आर्थिक स्वायत्तता का आनन्द लेती हैं। यह सत्य है कि संघवाद विकेंद्रीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। यह इस विचार को लागू करती है कि सरकार लोगों के निकट होनी चाहिए ताकि वे इस तक पहुंच सके। स्थानीय समस्याओं को स्थानीय और क्षेत्रीय सरकारों द्वारा बड़ी आसानी से सुलझाया जा सकता है न कि पहले से ही कार्यभार से लदी केंद्रीय सरकार द्वारा शक्तियों के विभाजन से कार्य कुशलता बढ़ती है। अतः संघीय व्यवस्था में स्थायित्व को अच्छी तरह बनाये रखा जा सकता है।

● दूसरी ओर संघीय सरकार की कुछ कमियां भी हैं। केंद्र और राज्यों में अलग पार्टियों की सरकार से राजनीतिक टकराव की सम्भावना बढ़ जाती है। निसन्देह संघवाद एक खर्चीली व्यवस्था है। फाइनर ने ठीक ही कहा था "यह वित्तीय रूप से खर्चीली है क्योंकि प्रशासनिक मशीनरी और प्रक्रिया का कई बार दोहराव होता है। यह ऊर्जा और समय को भी बर्बाद करता है और कानून की एकरूपता तथा उपयुक्त प्रशासनिक कुशलता अधिकांशतः राजनीतिक और प्रशासनिक वार्तालाप पर निर्भर करता है। 

● भारत में प्रत्येक संकट के बाद केंद्र पहले से अधिक सशक्त हो कर उभरा है जो यह दर्शाता है कि संकटों को शक्तिशाली केंद्रीय सरकार अच्छे ढंग से हल कर सकती है। इससे सघवाद की कमजोरी तथा एकात्मक सरकार की ताकत सिद्ध होती है। हालांकि कुछ कमियों के बाद भी संघीय सरकार एक बेहतर और श्रेष्ठ विकल्प दिखाई पड़ता है।


● इसको सारबद्ध करते हुए इस बात पर दुर्गा दास बासु के साथ सहमति दिखाई देती है कि भारत में न तो विशुद्ध रूप से संघवाद है और नहीं एकात्मवाद। बल्कि दोनों का मिश्रण है। यह एक विचित्र प्रकार का संघ है। 

● राजनीतिक विचारकों ने कहा है कि केंद्रीय सरकार के पास इतनी अभूतपूर्व शक्तियां हैं कि भारत एक अर्द्ध संघीय ढांचे से अधिक कुछ नहीं है अथवा यदि यहां किसी तरह से संघवाद है भी इसमें अनेक एकात्मक विशेषताएं हैं। 

● जी.एन. जोशी के शब्दों में “यह भारतीय संघ की कुछ विशिष्ट विशेषताएं हैं। इसमें अन्य संघों के साथ समानता भी है और असमानता भी। इसको ठीक तरह से अर्द्ध संघात्मक कहा जा सकता है जिसमें संघात्मक के साथ एकात्मकता के भी अनेक तत्व विद्यमान हैं।


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